Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ | // 1628 // च कृष्णलेश्यापरिणाममाश्रित्येति // 1 // नीललेश्याशते उक्कोसेणं दस सागरोवमाई पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाई 40 शतके ति, पञ्चमपृथिव्या उपरितनप्रस्तटे दश सागरोपमाणि पल्योपमासङ्खयेयभागाधिकान्यायुः संभवन्ति, नीललेश्या च तत्र सूत्रम् 865 अभवस्यादत उक्तं उक्कोसेण मित्यादि, यच्चेह प्राक्तनभवान्तिमान्तर्मुहूर्तं तत्पल्योपमासङ्खयेयभागे प्रविष्टमिति न भेदेनोक्तम्, सिद्धियमहाएवमन्यत्रापि, तिसु उद्देसएसु त्ति प्रथमतृतीयपञ्चेमेष्विति // 1 // कापोतलेश्याशते उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाइं पलिओवमस्स जुम्मसयं असंखेज्जइभागमब्भहियाई ति यदुक्तं तत्तृतीयपृथिव्या उपरितनप्रस्तटस्थितिमाश्रित्येति // 1 // तेजोलेश्याशते दो सागरोवमाइंड इत्यादि यदुक्तं तदीशानदेवपरमायुराश्रित्येत्यवसेयम्, // 1 // पद्मलेश्याशते उक्कोसेणं दस सागरोवमाई इत्यादि तु यदुक्तं तद्ब्रह्मलोकदेवायुराश्रित्येति मन्तव्यम्, तत्र हि पद्मलेश्यैतावच्चायुर्भवति, अन्तर्मुहूर्तं च प्राक्तनभवावसानवर्तीति // 1 // शुक्ललेश्याशते संचिट्ठणा ठिई य जहा कण्हलेस्ससए ति त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि सान्तर्मुहूर्त्तानि शुक्ललेश्याऽवस्थानमित्यर्थः, एतच्च पूर्वभवान्त्यान्तर्मुहूर्तमनुत्तरायुश्चाश्रित्येत्यवसेयम्, स्थितिस्तु त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणीति, नवरं सुक्कलेस्साए उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई ति यदुक्तं तदुपरितनौवेयकमाश्रित्येति मन्तव्यम्, तत्र हि देवानामेतावदेवायुः शुक्ललेश्या च भवति, अभव्याश्चोत्कर्षतस्तत्रैव देवतयोत्पद्यन्ते न तु परतोऽपि, अन्तर्मुहूर्तं च पूर्वभवावसानसम्बन्धीति॥१ / / / 865 // 40 // // इति श्रीमच्चन्द्रकुलनभोनभोमणिश्रीमदभयदेवाचार्यवर्यविहितविवरणयुतं श्रीमद्भगवतीवृत्तौ // 1628 // चत्वारिंशं शतकं समाप्तम् //
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