Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1623 // 40 शतके सूत्रम् 864 संजिपञ्चेन्द्रियाः ॥अथ चत्वारिंशंशतकम् // नवरं चत्वारिंशेशते १कडजुम्मरसन्निपंचिंदिया णं भंते! कओ उववजंति ?,उववाओ चउसुवि गईसु, संखेज्जवासाउयअसंखेनवासाउयपज्जत्तअपज्जत्तएसु य न कओवि पडिसेहो जाव अणुत्तरविमाणत्ति, परिमाणं अवहारो ओगाहणा य जहा असन्निपंचिंदियाणं 2 वेयणिज्जवजाणं सत्तण्हं पगडीणं बंधगा वा अबंधगा वा वेयणिजस्स बंधगा नो अबंधगा मोहणिजस्स वेदगा वा अवेदगा वा सेसाणं सत्तण्हवि वे० नो अवे० सायावे० वा असायावे. वा मोहणिज्जस्स उदई वा अणुदई वा सेसाणं सत्तण्हवि उदयी नो अणुदई नामस्स गोयस्स य उदीरगा नो अणुदी० सेसाणं छण्हवि उदी० वा अणुदी० वा कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा वा सम्मदिट्ठी वा मिच्छादिट्ठीवा सम्मामिच्छादिट्ठीवाणाणी वा अन्नाणी वामणजो० वइजो० कायजो० उवओगो वन्नमादी उस्सासगा वा नीसासगा वा आहारगाय जहा एगिदियाणं विरया य अविरयाय विरयाविरयारसकिरिया नो अकि०।३ तेणंभंते! जीवा किं सत्तविहबंधगा अट्ठविहबं० वा छव्विहबं० एगविहबं० वा?, गोयमा! सत्तविहबं० वाजाव एगविहबं० वा, 4 तेणं भंते! जीवा किं आहारसन्नोवउत्ता जाव परिग्गहसन्नो० वा नोसन्नो० वा?, गोयमा! आहारसन्नो० जाव नोसन्नो० वा सव्वत्थ पुच्छा भाणियव्वा कोहकसायी वा जाव लोभक० वा अक० वा इत्थीवेदगा वा पुरिसवे० वा नपुंसगवे० वा अवे० वा इत्थिवेदबंधगा वा पुरिसवेदबं० वा नपुंसगवेदबं० वा अबं० वा, सन्नी नो असन्नी सइंदिया नो अणंदिया संचिट्ठणा ज० एक्कं समयं, उ० सागरोपमसयपहुत्तं सातिरेगं आहारो तहेव जाव नियमं छद्दिसिं ठिती ज० एवं समयं, उ० तेत्तीसं सागरोवमाई छ समुग्घाया आदिल्लगा मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयावि मरंति असमोहयाविमरंति, उवट्टणा जहेव उववाओन कत्थइ पडिसेहोजाव अणुत्तरविमाणत्ति, ५अहभंते! सव्वपाणा जाव अणंतखुत्तो, // 1623 //
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