Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 504
________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1582 // 31 शतके उद्देशकः 1-28 सूत्रम् 829-841 क्षुल्लकयुग्मादीनामुत्पादः उववाएयव्वा, सेसं तहेव / 6 खुड्डागतेयोगने० णं भंते! कओ उव० किं नेरइएहिंतो? उववाओजहा वक्कंतीए, 7 ते णं भंते! जीवा एगसमएणं के० उव०?, गोयमा! तिन्नि वा सत्त वा एक्कारस वा पन्नरस वा संखेज्जा वा असं० वा उव० सेसंजहा कडजुम्मस्स, एवं जाव अहेसत्तमाए। 8 खुड्डागदावरजुम्मने० णं भंते! कओ उव०?, एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे नवरं परिमाणं दो वा छ वा दस वा चोद्दसवा संखेना वा असं० वा सेसं तं चेव जाव अहे सत्तमाए। 9 खुड्डागकलिओगने० णं भंते! कओ उव०?, एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे नवरंपरिमाणं एक्को वापंच वा नव वा तरेस वा संखेज्जा वा असं० वा उव० सेसंतंचेव एवं जाव अहेसत्तमाए। सेवं भंते! 2 जाव विहरति ।सूत्रम् 829 // 31-1 // १कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववजंति?, एवं चेव जहा ओहियगमो जाव नो परप्पयोगेणं उव०, नवरं उववाओजहा वक्त्रंतीए, धूमप्पभापुढविने० णं सेसं तंचेव, २धूमप्पभापुढविकण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मने० णं भंते! कओ उव०?, एवं चेव निरवसेसं, एवं तमाएवि अहेसत्तमाएवि नवरं उववाओ सव्वत्थ जहा वळंतीए 3 कण्हलेस्सखुड्डागतेओगनेणं भंते! कओ उवव०?, एवं चेव नवरं तिन्नि वा सत्त वा एक्कारस वा पन्नरस वा संखेजा वा असंखेना वा सेसंतंचेव एवं जाव अहेसत्तमाएवि।४ कण्हलेस्सखुड्डागदावरजुम्मने० णं भंते! कओ उव०?, एवं चेव नवरं दो वा छ वा दस वा चोद्दस वा सेसंतंचेव, धूमप्पभाएविजाव अहेसत्तमाए। कण्हलेस्सखुड्डागकलियोगने० णं भंते! कओ उव०?, एवं चेव नवरं एक्को वा पंच वा नव वा तरेस वा संखेज्जा वा असं० वासेसंतंचेव, एवं धूमप्पभाएवि तमाएवि अहे सत्तमाएवि। सेवं भंते! रत्ति ॥सूत्रम् 830 // 31-2 // १नीललेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइयाणंभंते! कओउववखंति, एवं जहेव कण्हलेस्सखुड्डागकङजुम्मा नवरं उववाओजोवालुयप्पभाए सेसंतं चेव, वालुयप्पभापुढविनीललेस्सखुड्डागकडजुम्मने एवं चेव, एवं पंकप्पभाएवि, एवं धूमप्पभाएवि, एवं चउसुवि // 1582 //

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