Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1595 // 34 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 850 एकेन्द्रियविग्रहादि 88888888888 चत्तारि आलावगा सुहुमेहिं अपजत्तएहिं ताहे पज्जत्तएहिं बायरेहिं अपज्जत्तएहिं ताहे पज्जत्तएहिं उववाएयव्वो 4, एवं चेव सुहुमतेउकाएहिवि अपज्जत्तएहिं 1 ताहे पज्जत्तएहिं उववाएयव्वो 2, 5 अपज्जत्तसुहुमपु०काइएणं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए रत्ता जे भविए मणुस्सखेत्ते अपज्जत्तबादरतेउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते! कइसमइएणं विग्ग० उव०?, सेसं तं चेव, एवं पज्जत्तबायरतेउक्काइयत्ताए उववाएयव्वो 4, वाउक्काइए सुहुमबायरेसु जहा आउक्काइएसु उववाओ तहा उववाएयव्वो 4, एवं वण काइएसुवि 20, 6 पजत्तसुहुमपु०काइएणं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए एवं पज्जत्तसुहुमपु०काइओवि पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहणावेत्ता एएणंचेव कमेणं एएसुचेव वीससुठाणेसु उववाएयव्वो जाव बादरवणकाइएसुपज्जत्तएसुवि 40, एवं अपनत्तबादरपु०काइओवि 60, एवं पज्जत्तबादरपु०काइओवि 80, एवं आउकाइओवि चउसुवि गमएसु पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए एयाए चेव वत्तव्वयाए एएसु चेव वीसइठाणेसु उववाएयव्वो 160, सुहुमतेउकाइओवि अपज्जत्तओ पज्जत्तओ य एएसुचेव वीसाए ठाणेसु उववाएयव्वो, 7 अपज्जत्तबायरतेउक्काइए णं भंते! मणुस्सखेत्ते समोहए 2 जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपु०काइयत्ताए उववजित्तए सेणं भंते! कइसमइएणं विग्ग० उव० सेसं तहेव जाव से तेणटेणं एवं पु०काइएसु चउविहेसुवि उववाएयव्वो, एवं आउकाइएसु चउविहेसुवि, तेउकाइएसु सुहुमेसु अपज्जत्तएसु पज्ज० य एवं चेव उवल्यव्वो, 8 अप०बान्तेउक्काइए णं भंते! मणुस्सखेत्ते समोहए समो०२ जे भविए मणुस्सखेत्ते अप०बा०तेउक्काइयत्ताए उवात्तए से णं भंते! कतिसम०?, सेसंतंचेव, एवं प०बान्तेउक्काइयत्ताएवि उवव्यव्वो, वाउकाइयत्ताए यवणकाइयत्ताए य जहा पु०काइएसु तहेव चउक्कएणं भेदेणं उव०यव्वो, एवं पज्जत्तबायरतेउकाइओऽवि समयखेत्ते समोहणावेत्ता एएसुचेव वीसाए ठाणेसु उवव्यव्वो जहेव अपज्जत्तओ उववाइओ, एवं सव्वत्थवि बायरतेउकाइया अपज्जत्तगा य पन्ज० य समयखेत्ते उव०यव्वा // 1595 //
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