Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1598 // अध: त्पादः पश्चिमान्तादिगमानामपि,ततश्चैव रत्नप्रभाप्रकरणे सर्वाणि षोडशशतानिगमानामिति ।शर्कराप्रभाप्रकरणेबादरतेजस्कायिक- 34 शतके सूत्रे दुसमइएण वेत्यादि, इह शर्कराप्रभापूर्वचरमान्तान्मनुष्यक्षेत्र उत्पद्यमानस्य समश्रेणिर्नास्तीति एगसमइएण मितीह नोक्तम्, उद्देशकः१ सूत्रम् 851 दुसमइएण मित्यादि त्वेकवक्रस्य द्वयोर्वा सम्भवादुक्तमिति // 13 // // 850 // अथ सामान्येनाधःक्षेत्रमूर्ध्वक्षेत्रं चाश्रित्याह१४ अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइएणं भंते! अहोलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए 2 जे भविए उडलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले पृथ्व्यादीना मूर्ध्वादावुखेत्ते अपजत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए सेणंभंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा?, गोयमा! तिसमइएणवा चउसमइएण वा विग्ग० उव०?, से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ तिसमइएण वा चउसम० वा विग्ग० उव०?, गोयमा! अपज्जत्तसुहुमपु०काइए णं अहोलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए 2 जे भविए उड्डलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अप०सुपु०काइयत्ताए एगपयरंमि अणुसेढीए उववज्जित्तए से णं तिसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा जे भविए विसेढीए उववजित्तए से णं चउसमइएणं विग्ग० उव० से तेणटेणं जाव उव०, एवं पज्जत्तसु०पु०काइयत्ताएऽवि, एवं जाव प००तेउकाइयत्ताए, 15 अप०सुपुढविकाइएणं भंते! अहेलोग जाव समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अप०बायरतेउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते!, कइसमइएणं विग्ग० उव०?, गोयमा! दुसमइएण वा तिसम० वा विग्ग० उववजेजा, से केणटेणं?, एवं खलु गोयमा! मए सत्त सेढीओ प०, तं० उजुआयता जाव अद्धचक्कवाला, एगओवंकाए सेढीए उववजमाणे दुसमइएणं विग्ग० उव० दुहओवंकाए सेढीए उववजमाणे तिसमइएणं विग्ग० उव० से तेणद्वेणं, एवं पजत्तएसुवि बायरतेउकाइएसुवि उववाएयव्वो, वाउक्काइयवणकाइयत्ताए चउक्कएणं भेदेणं जहा 8 // 1598 // आउक्काइयत्ताए तहेव उववाएयव्वो 20, एवं जहा अप०सु०पु०क्काइयस्स गमओ भणिओ एवं प०सु०पु०काइयस्सवि भाणियव्वो तहेव वीसाए ठाणेसुउववाएयव्वो 40, 16 अहोलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्लेखेत्ते समोहए रत्ता एवं बायरपु०काइयस्सवि अपज्जत्तगस्स
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