Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1601 // त्पादः कइसमइएणं विग्ग० उव०?, गोयमा! एगसमइएण वा दुसम० वा तिसम० वा चउसम० वा विग्ग० उववज्जेज्जा, से केणटेणं?, एवं | 34 शतके जहेव पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहया पुरच्छि० चेव चरिमंते उववाइया तहेव पुरच्छि० चरिमंते समोहया पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते उद्देशकः१ सूत्रम् 851 उववाएयव्वा सव्वे, 25 अपज्जत्तसुहुमपु०काइएणं भंते! लोगस्स पुरच्छि० चरिमंते समोहए 2 जे भविए लोगस्स उत्तरिल्ले चरिमंते अधः अपज्जत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उवव० से णं भंते! एवं जहा पुरच्छि० चरिमंते समोहओ दाहिणिल्ले चरिमंते उववाइओ तहाल पृथ्व्यादीना मूर्ध्वादावुपुरच्छिमिल्ले० समोहओ उत्तरिल्ले चरिमंते उववाएयव्वो, 26 अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइएणं भंते! लोगस्स दाहिणिल्ले चरिमंते समोहए रत्ता जे भविए लोगस्स दाहिणिल्ले चेव चरिमंते अपज्जत्त सुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए एवं जहा पुरच्छिमिल्लेसमोहओ पुरच्छि० चेव उववाइओतहेव दाहिणिल्लेसमोहए दाहि० चेव उववाएयव्वो, तहेव निरवसेसंजावसु०वण काइओपज्जत्तओसु०वण काइएसु चेव पज्जत्तएसु दाहिणिल्ले चरिमंते उववाइओ एवं दाहि० समोहओ पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते उववाएयव्वो नवरं दुसमइयतिसमइयचउसमइयविग्गहो सेसं तहेव, दाहि० समोहओ उत्तरिल्ले चरिमंते उववाएयव्वो जहेव सट्टाणि तहेव एगसमइयदुसमइयतिसमइयचउसमइयविग्गहो, पुरच्छिमिल्ले जहा पञ्चच्छिमिल्ले तहेव दुसमइयतिसमइयचउसमय०,पञ्चच्छिमिल्ले य चरिमंते समोहयाणं पच्चच्छि० चेव उववजमाणाणंजहा सट्ठाणे, उत्तरिल्ले उववजमाणाणं एगसमइओ विग्गहो नत्थि, सेसंतहेव, पुरच्छिमिल्ले जहासट्ठाणे, दाहिणिल्ले एगसमइओ वि० नत्थि, सेसं तं चेव, उत्त० समोहयाणं उत्त० चेव उववज्जमाणाणं जहेव सट्ठाणे, उत्त० समोहयाणं पुरच्छि० उववजमाणाणं एवं चेव, नवरं एगसमइओ विग्गहो नत्थि,उत्त० समोहयाणंदाहिणिल्ले उववज्जमाणाणंजहा सट्ठाणे, उत्त० समोहयाणं // 1601 // पच्चच्छि० उववज्जमा० एगसमइओ वि० नत्थि, सेसं तहेव जावसु०वण काइओ पज्जत्तओ सु०वणकाइएसुपज्जत्तएसुचेव // 27 कहिन्नं भंते! बायरपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा प०?, गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसुजहा ठाणपदे जाव सु०वण काइया
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