Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1581 // 829-841 मुत्पादः ॥अथ एकत्रिंशंशतकम्॥ 31 शतके ॥एकत्रिंशशतके प्रथमादारभ्याष्टाविंशान्ता उद्देशकाः॥ उद्देशक: 1-28 त्रिंशत्तमशते चत्वारि समवसरणान्युक्तानीति चतुष्टयसाधाच्चतुर्युग्मवक्तव्यतानुगतमष्टाविंशत्युद्देशकयुक्तमेकत्रिंशं शतं. सूत्रम् व्याख्यायते, तस्य चेदमादिसूत्र क्षुल्लकयु१ रायगिहे जाव एवं वयासी-कति णं भंते! खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता?, गोयमा! चत्तारि खुड्डा जुम्मा प० तं० कडजुम्मे 1 तेयोए 2 ग्मादीनादावरजुम्मे 3 कलिओए 4, से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ चत्तारि खुड्डा जुम्मा० प० तं० कडजुम्मे जाव कलियोगे?, गोयमा! जेणं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए सेत्तं खुड्डागकडजुम्मे, जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए सेत्तं खुड्डागतेयोगे, जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए सेत्तं खुड्डागदावरजुम्मे, जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए सेत्तं खुड्डागकलियोगे, से तेणटेणंजाव कलियोगे। रखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववजंति? किं नेरइएहिंतो उववजंति? तिरिक्ख० पुच्छा, गोयमा! नो नेरइएहिंतो उव० एवं नेरइयाणं उववाओ जहा वकंतीए तहा भाणियव्वो। 3 तेणंभंते! जीवा एगसमएणं केवइया उव०?,गोयमा! चत्तारि वा अट्ठवा बारसवासोलस वा संखेज्जा वा असंखेजा वा उव०।४ ते णं भंते! जीवा कहं उव०?, गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे अज्झवसाण एवं जहा पंचविंसतिमे सए अट्ठमुद्देसए नेरइयाणंवत्तव्वया तहेव इहविभा० जाव आयप्पओगेणं उव० नो परप्पयोगेणं उव०।५ रयणप्पभापुढविखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उव०?, एवं जहा ओहियनेरइयाणं वत्तव्वया सच्चेव रयणप्पभाएविभा० जाव नो परप्पयोगेणं उव०, एवं सक्करप्पभाएवि जाव अहेसत्तमाए, एवं उववाओ जहा वक्वंतीए, अस्सन्नी खलु पढमंदोच्चं व सरीसवा तइय पक्खी / गाहाए // 1581 //
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