Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1584 // 31 शतके उद्देशकः 1-28 सूत्रम् 829-841 क्षुल्लकयुग्मादीनामुत्पादः सूत्रम् 836 // 31-8 // / ३जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि उद्देसया भणिया एवं अभवसिद्धीएहिवि चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा जाव काउलेस्साउद्देसओत्ति / सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 837 // 31-12 // ४एवं सम्मदिट्ठीहिविलेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा, नवरंसम्मदिट्ठी पढमबितिएसुवि दोसुवि उद्देसएसुअहेसत्तमापुढवीए न उववाएयव्वो, सेसंतंचेव / सेवं भंते! रत्ति॥सूत्रम् 838 // 31-16 // ५मिच्छादिट्ठीहिवि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा जहा भवसिद्धियाणं / सेवं भंते! रत्ति ॥सूत्रम् 839 // 31-20 // 6 एवं कण्हपक्खिएहिवि लेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा जहेव भवसिद्धीएहिं / सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 840 // 3124 // 7 सुक्कपक्खिएहिं एवं चेव चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा जाव वालुयप्पभापुढविकाउलेस्ससुक्कपक्खियखुड्डागकलिओगनेरइया णं भंते! कओ उवव०, तेहव जाव नो परप्पयोगेणं उवव०। सेवं भंते रत्ति // सूत्रम् 841 // सव्वेवि एए अट्ठावीस उद्देसगा॥३१२८॥उववायसयं सम्मत्तं // 31 // रायगिहे इत्यादि, खुड्डा जुम्म त्ति युग्मानि- वक्ष्यमाणा राशिविशेषास्ते च महान्तोऽपि सन्त्यतः क्षुल्लकशब्देन विशेषिताः, तत्र चत्वारोऽष्टौ द्वादशेत्यादिसङ्ख्यावान् राशिः क्षुल्लकः कृतयुग्मोऽभिधीयते, एवं त्रिसप्तैकादशादिकः क्षुल्लकत्र्योजः, द्विषट्प्रभृतिकः क्षुल्लकद्वापरः, एकपञ्चकप्रभृतिकस्तु क्षुल्लककल्योज इति // 1 // जहा वक्तीए त्ति प्रज्ञापनाषष्ठपदे, अर्थतश्चैवं पञ्चेन्द्रियतिर्यग्भ्यो गर्भजमनुष्येभ्यश्च नारका उत्पद्यन्त इति, विशेषस्तु अस्सन्नी खलु पढम मित्यादि गाथाभ्यामवसेयः,
Loading... Page Navigation 1 ... 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562