Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 471
________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1549 // मोहलक्षण- पापकर्मणो बन्धभावेनान्त्यद्वयाभावात्, अत एवाह मिच्छे त्यादि / / 7 / / ज्ञानद्वारे केवलनाणीणं चरमो भंगो त्ति 26 शतके वर्तमान एष्यत्काले च बन्धाभावात् अन्नाणीणं पढमबीय त्ति, अज्ञाने मोहलक्षणपापकर्मणः क्षपणोपशमनाभावात् / / 8 // उद्देशकः१ सञ्ज्ञाद्वारे पढमबीयत्ति आहारादिसज्ञोपयोगकाले क्षपकत्वोपशमकत्वाभावात्, नोसन्नोवउत्ताणं चत्तारि त्ति नोसञोपयुक्ता सूत्रम् 810-811 आहारादिषु गृद्धिवर्जितास्तेषां च चत्वारोऽपि क्षपणोपशमसम्भवादिति // 9 // वेदद्वारे सवेयगाणं पढमबीय त्ति वेदोदये हि जीवादीनां पापबन्धादि क्षपणोपशमौ न स्यातामित्याद्यद्वयं अवेदगाणं चत्तारि त्ति स्वकीये वेद उपशान्ते बध्नाति भन्त्स्यति च मोहलक्षणं पापं कर्म सूत्रम् 812 यावत्सूक्ष्मसम्परायो न भवति प्रतिपतितो वा भन्त्स्यतीत्येवं प्रथमः, तथा वेदे क्षीणे बध्नाति सूक्ष्मसंपरायाद्यवस्थायांच न नारकादीनां पापज्ञानावभन्त्स्यतीत्येवं द्वितीयः, तथोपशान्तवेदः सूक्ष्मसम्परायादौ न बध्नाति प्रतिपतितस्तु भन्त्स्यतीति तृतीयः, तथा क्षीणे वेदे बन्धित्वादि सूक्ष्मसम्परायादिषुन बध्नाति न चोत्तरकालं भन्त्स्यतीत्येवं चतुर्थः, बद्धवानिति च सर्वत्र प्रतीतमेवेति कृत्वा न प्रदर्शितमिति // 10 // कषायद्वारे सकसाईणं चत्तारित्ति तत्राद्योऽभव्यस्य द्वितीयो भव्यस्य प्राप्तव्यमोहक्षयस्य तृतीय उपशमकसूक्ष्मसम्परायस्य चतुर्थः क्षपकसूक्ष्मसम्परायस्य, एवं लोभकषायिणामपि वाच्यम्, कोहकसाईणं पढमबीय त्ति इहाभव्यस्य प्रथमो द्वितीयो - भव्यविशेषस्य तृतीयचतुर्थी त्विह न स्तो वर्तमानेऽबन्धकत्वस्याभावात् // 11 // अकसाईण मित्यादि, तत्र बंधी न बंधइल बंधिस्सइ त्ति उपशमकमाश्रित्य, बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ त्ति क्षपकमाश्रित्येति // 12 // योगद्वारे सजोगिस्स चउभंगो त्ति अभव्यभव्यविशेषोपशमकक्षपकाणां क्रमेण चत्वारोऽप्यवसेयाः, अजोगिस्स चरमो त्ति बध्यमानभन्त्स्यमानत्वयोस्तस्याभावादिति // 13 // // 811 // 14 नेरइएणं भंते! पावं कम्मं किंबंधी बंधइ बंधिस्सइ?,गोयमा! अत्थेगतिए बंधी पढमबितिया १,१५सलेस्सेणं भंते! नेरतिए // 1549 //

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