Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1569 // 29 शतके उद्देशकः 2-11 सूत्रम् 823 अनन्तरोत्पन्नादीनां पापसमप्रस्थापनादिः न बध्यन्ते तथेह समायुष्कादयोऽन्यत्रान्यथाव्याख्याता अपि व्याख्येया इत्यर्थः। कम्मसमज्जणणसए बाहुल्लाओ समाउज्जा // 2 // इति // एकोनत्रिंशशते प्रथम उद्देशकः।। 29-1 // १अणंतरोववन्नगाणंभंते! नेरइया पावं कम्मं किं समायं पट्टविंसुसमायं निट्ठविंसु? पुच्छा, गोयमा! अत्थेगइया स० पट्ठविंसु स. निट्ठविंसुअत्थे० स० पट्टविंसुविसमायं निट्ठविंसु, 2 सेकेणटेणंभंते! एवं वुच्चइ अत्थे०स० पट्ठविंसु? तंचेव, गोयमा! अणंतरोव० नेर० दुविहा पं० 20 अत्थे० समाउया समोववन्नगा अत्थे० समाउया विसमोव०, तत्थ णंजे तेसमाउया समोववन्नगा ते णंपावं कम्म स० पट्ठविंसुस० निट्ठविंसु,तत्थ णंजे ते समाउया विसमोववन्नगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु, से तेणतं चेव। ३सलेस्साणं भंते! अणंतरो० नेर० पावं एवं चेव, एवं जाव अणागारोव०, एवं असुरकु० एवं जाववेमा० नवरंजंजस्स अस्थि तं तस्स भाणि०, एवं नाणावरणिज्जेणवि दंडओ, एवं निरवसेसं जाव अंतराइएणं / सेवं भंते! रत्ति जाव विहरति // 29-2 // एवं एएणं गमएणं जच्चेव बंधिसए उद्देसगपरिवाडी सच्चेव इहवि भा० जाव अचरिमोत्ति, अणंतरउद्देसगाणं चउण्हवि एक्का वत्तव्वया सेसाणं सत्तण्हं एक्का।सूत्रम् 823 // 29-11 // कम्मपट्ठवणसयं सम्मत्तं // अणंतरोवन्नगा ण मित्यादिद्वितीयः, तत्र चानन्तरोपपन्नका द्विविधाः॥१॥ समाउया समोववन्नग त्ति अनन्तरोपन्नानां सम एवायुरुदयो भवति तद्वैषम्येऽनन्तरोपपन्नत्वमेव न स्यादायुःप्रथमसमयवर्त्तित्वात्तेषां समोववन्नग त्ति मरणानन्तरं परभवोत्पत्तिमाश्रित्य, ते च मरणकाले भूतपूर्वगत्याऽनन्तरोपपन्नका उच्यन्ते, समाउया विसमोववन्नग त्ति विषमोपपन्नकत्वमिहापि 0 प्रस्थापनशते समायुरुत्पन्नेषु चतुर्भङ्गी कथं नु कथं वा समर्जनशते भङ्गा अर्थतो गम्याः? // 1 // प्रस्थापनशते भङ्गानां पृच्छा भङ्गानुलोम्यतो वाच्या। कर्मसमर्जनशते बाहुल्यात्समायोजयेत्॥११॥ // 1569 //
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