Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ 880888 श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1547 // 26 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 810-811 जीवादीनां पापबन्धादि 7 सम्मद्दिट्ठीणं चत्तारि भंगा, मिच्छादिट्ठीणं पढमबितिया भंगा, सम्मामिच्छादिट्ठीणं एवं चेव। 8 नाणीणं चत्तारि भंगा, आभिणिबोहियणाणीणं जाव मणपज्जवणाणीणं चत्तारि भंगा, केवलनाणीणं चरमो भंगो जहा अलेस्साणं 5, अन्नाणीणं पढमबितिया, एवंमइअन्नाणीणंसुयअन्नाणीणं विभंगणाणीणवि६।९आहारसन्नोवउत्ताणंजाव परिग्गहसन्नोवउत्ताणं पढमबितिया नोसन्नोवउत्ताणं चत्तारि 7 / 10 सवेदगाणं पढमबितिया, एवं इत्थिवेदगा पुरिसवेदगा नपुंसगवेदगावि, अवेदगाणं चत्तारि॥११ सकसाईणं चत्तारि, कोहकसायीणं पढमबितिया भंगा, एवं माणकसायिस्सवि मायाकसायिस्सवि लोभकसायिस्सवि चत्तारि भंगा, 11 अकसायीणंभंते! जीवे पावं कम्मं किंबंधी? पुच्छा, गोयमा! अत्थेगतिएबंधीन बंधइ बंधिस्सइ 3 अत्थेगतिए बंधीण बंधइणबंधिस्सइ 4 / 12 सजोगिस्स चउभंगो, एवं मणजोगस्सवि वइजोगस्सवि कायजोगस्सवि, अजोगिस्स चरिमो, सागारोवउत्ते चत्तारि, अणागारोवउत्तेवि चत्तारि भंगा ११॥सूत्रम् 811 / / जीवा ये त्यादि, जीवा य त्ति जीवाः प्रत्युद्देशकं बन्धवक्तव्यतायाः स्थानम्, ततो लेश्याः पाक्षिका दृष्टय अज्ञानं ज्ञानं सञ्ज्ञा वेदः कषाया योग उपयोगश्च बन्धवक्तव्यतास्थानम्, तदेवमेतान्येकादशापिस्थानानीति गाथार्थः। तत्रानन्तरोत्पन्नादि-8 विशेषविरहितं जीवमाश्रित्यैकादशभिरुक्तरूपैरैर्बन्धवक्तव्यतांप्रथमोद्देशकेऽभिधातुमाह तेण मित्यादिपावं कम्मं ति अशुभं कर्म बंधी ति बद्धवान् बंधइ त्ति वर्तमाने बंधिस्सइ त्ति अनागत इत्येवं चत्वारो भङ्गा बद्धवानित्येतत्पदलब्धाः, न बंधी त्येतत्पदलभ्यास्त्विह न भवन्ति, अतीतकालेऽबन्धकस्य जीवस्यासम्भवात्, तत्र च बद्धवान् बध्नाति भन्त्स्यति चेत्येष प्रथमोऽभव्यमाश्रित्य, बद्धवान् बध्नाति न भन्त्स्यतीति द्वितीयः प्राप्तव्यक्षपकत्वं भव्यविशेषमाश्रित्य, बद्धवान् न बध्नाति भन्स्यतीत्येष तृतीयोमोहोपशमेवर्तमानं भव्यविशेषमाश्रित्य, ततःप्रतिपतितस्य तस्य पापकर्मणोऽवश्यंबन्धनात्, बद्धवान् // 1547 //
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