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श्री वीरवर्धमानचरित
+ २२ = ५६ ) छप्पन वर्षकी आयु तक अर्थात् वि. सं. १४९३ तक आपका दिगम्बर वेष में रहना सिद्ध होता है । इसके पश्चात् पूर्वोक्त लेखांक ३३१, ३३२, ३३३ और ३३४ के अनुसार वि. सं. १४९७ तक उनका प्रतिष्ठादि कराना सिद्ध होता है और उक्त ऐतिहासिक पत्र के अनुसार वि. सं. १४९९ में आपका मरण और चरण-स्थापन सिद्ध है । इस प्रकार सकलकीर्तिकी आयु ६२ वर्ष सिद्ध होती हैं । यतः ऐतिहासिक पत्रमें २२ वर्ष नग्न रहनेका स्पष्ट उल्लेख है, और लेखांकोंके अनुसार सं. १४९७ तक प्रतिष्ठादि कराना भी सिद्ध है, उससे यही सिद्ध होता है कि सकलकीर्ति अपने जीवनके अन्तिम कालमें भट्टारकीय वेषके अनुसार वस्त्रधारी हो गये थे ।
यद्यपि उक्त ऐतिहासिक पत्र में भट्टारकों की वि. सं. १३०० से लेकर वि. सं. १८०५ तक बागड़देशमें होनेवाले भट्टारकोंकी पट्टावली दी गयी है अतः उसमें सकलकीतिके ग्रन्थरचना - कालका कोई उल्लेख नहीं हैं और मूर्तिलेखों आदिसे उनका वि. सं. १४९७ तक प्रतिष्ठा आदिके करानेका उल्लेख मिलता है, इससे यह सिद्ध होता है कि सकलकीर्ति वि. सं १४७१ से लेकर सं. १४९० तक वे एकमात्र ग्रन्थोंकी रचना करनेमें संलग्न रहे । उन्होंने अपने किसी भी ग्रन्थ में उसके रचनाकालको नहीं दिया है, तो भी उनके निर्मित ग्रन्थोंको देखनेसे यह अवश्य प्रतीत होता है कि उन्होंने चार अनुयोगोंके क्रमसे अपने ग्रन्थोंकी रचना की होगी । तदनुसार आदिनाथ आदि तीर्थंकरोंके चरित एवं अन्य चरित पहले रचे । पुनः प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, मूलाचार प्रदीप आदि ग्रन्थोंकी रचना की । तत्पश्चात् कर्मविपाक, सिद्धान्तसार दीपक आदि ग्रन्थोंकी रचना की और अन्तिम कालमें समाधिमरणोत्साहदीपक जैसे ग्रन्थोंकी रचना की होगी ।
ऊपर दिये गये भट्टारक सम्प्रदायके लेखांक ३३१ और ३३२ में सकलकीर्तिको भ० शुभचन्द्रका भाई बताया गया है । तथा उक्त ऐतिहासिक पत्रके आधारपर उनका जन्म सं. १४३७ में सिद्ध होता है । सकलकीर्तिसे उनके भाई भ. शुभचन्द्र कितने बड़े थे, यह भट्टारक सम्प्रदायके लेखांक २४६ की पट्टावलीसे ज्ञात होता है । वह इस प्रकार है
'सं. १४५० माह सुदि ५ भ. शुभचन्द्रजी गृहस्थ वर्ष १६ दिक्षा वर्ष २४ पट्टवर्ष ५६ मास ३ दिवस ४ अन्तर दिवस ११ सर्व वर्ष ९६ मास ३ दिवस २५ ब्राह्मण जाति पट्ट दिल्ली ।
( बलात्कार गण, मन्दिर, अंजनगाँव ) इस पट्टावली के अनुसार शुभचन्द्र सं. १४५० में १६ वर्षके थे, अतः १४५० में से १६ घटा देनेपर सं. १४३४ में उनका जन्म होना सिद्ध होता है । ऊपर ऐतिहासिक पत्रके आधारपर सकलकीर्तिका जन्म सं. १४३७ में सिद्ध होता है । इससे यह स्पष्ट सिद्ध है कि शुभचन्द्र सकलकीर्तिसे ३ वर्ष बड़े थे । दूसरी बात यह भी ज्ञात होती है कि शुभचन्द्र की जन्मजाति ब्राह्मण थी । अतः सोलह वर्षमें ही उन्होंने दीक्षा ली, अतः वे बालब्रह्मचारी और अविवाहित हो ज्ञात होते हैं ।
‘भट्टारक सम्प्रदाय’के पु. ९६ पर जो बलात्कारगणकी उत्तर शाखाका कालपट दिया है, तदनुसार भ. पद्मनन्दिके प्रथम शिष्य शुभचन्द्र जयपुर - दिल्ली शाखाके, द्वितीय शिष्य सकलकीर्ति ईडरशाखाके और पट्टपर आसीन हुए । इनमें भ. शुभचन्द्रका समय सं. १४५० से १४५० से १५१० तक और देवेन्द्रकीर्तिका समय सं. १४५० से सम्प्रदाय के कालपटों में दी गयी है । परन्तु १४९९ के बादका कोई
तृतीय शिष्य देवेन्द्रकीर्ति सूरत शाखाके १५०७ तक, सकलकीर्तिका समय सं. १४९३ तक रहा है, यह बात 'भट्टारक प्रमाण वहाँपर नहीं दिया गया है । इस प्रकार ऊपरके विवेचनसे सकलकीर्तिका जीवनकाल वि. सं. १४३७ से १४९९ तक निर्विवाद सिद्ध होता है । इससे २६ वर्ष तक वे गृहस्थ अवस्थामें रहे और ४७ वर्ष तक संयमी जीवन व्यतीत करते हुए अनेक ग्रन्थोंकी रचना को और अनेक स्थानोंपर मूर्तिप्रतिष्ठा आदि करते रहे ।
१. किन्तु यदि शुभचन्द्र वास्तवमें सकलकीर्तिके बड़े भाई हैं, तो वे ब्रह्मग नहीं, किन्तु हमड़ होना चाहिए। मेरे विचार से दोनों गुरुभाई थे । सम्पादक
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