Book Title: Vir Vardhaman Charitam
Author(s): Sakalkirti, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना ग्रन्थमें उसके रचे जानेके कालका निर्देश नहीं किया है, तथापि निम्न लिखित उद्धरणोंसे ये प्रथम सकलकीर्ति सिद्ध होते हैं ५ (१) लेखांक ३३१ - चौबीसमूर्ति सं. १४९० वैसाख सुदी ९ सनौ श्रीमूलसंघे नन्दीसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दावार्यान्वये भ. पद्मनन्दी तत्पट्टे श्री शुभचन्द्र तस्य भ्राता जगत्त्रयविख्यात मुनि श्री सकलकीर्ति उपदेशात् बज्ञातीय ठा. नरवद भार्या बला तयोः पुत्र ठा. देपाल अर्जुन भीमा कृपा चासण चांपा कान्हा श्री आदिनाथप्रतिमेयं ॥ ( सूरत, दा. ५३ ) For Private And Personal Use Only लेखांक ३३२ - पार्श्वनाथमूर्ति संवत् १४९२ वर्षे वैशाखवदि १० गुरु श्रीमूल संघे....भ. श्रीपद्मनन्दिदेवाः तत्पट्टे श्रीशुभचन्द्रदेवाः ततभ्राता श्रीसकलकीर्ति उपदेशात् हुंबडन्याति उत्रेश्वरगोत्रे ठा. लींबा भार्या कह श्रीपार्श्वनाथं नित्यं प्रणमति सं. तेजा टोई श्री. ठाकरसी हीरा देवा मूडलि वास्तव्य प्रतिष्ठिता । (भा. ७, पृष्ठ १५ ) लेखाङ्क ३३३ शिलालेख स्वस्ति श्री १४९४ वर्षे वैशाखसुदी १३ गुरौ मूलसंघे.... भ. श्री पद्मनन्दी तत्पट्टे श्रीशुभचन्द्र भ. श्री सकलकीर्ति उपदेशाद्यौ व्याव ( ? ) कृत्वा संघवै नरपाल.... समस्त श्री संघ दिगम्बर अर्बदाचले आगिहतीर्थं सीतांबरु प्रासाद दिगम्बर पाछि दछाव्या श्री आदिनाथ बड़ादीकीजी श्री नेमिनाथ जी जिह श्री सीतल हरबुध प्रसाद दिगम्बर पाछिह पेहरी तिन वहण री महापूज धज अवासकरी संघवी गोव्यंद प्रशस्ति लिखाती.... । ( आबू, जैनमित्र ३-२-१९२१ ) लेखाङ्क ३३४, आदिनाथमूर्ति सं. १४९७ मूलसंघे श्री सकलको ति हुंबडज्ञातीय शाह कर्णा भार्या भोली सुता सोमा भात्री मोदी भार्या पासी आदिनाथं प्रणमति ॥ ( सूरत, दा. पृ. ५२ ) 'भट्टारक सम्प्रदाय' से उद्धृत उक्त मूर्ति और शिलालेखोंसे तीन बातें सिद्ध होती हैं - पहली तो यह कि सकलकीर्ति भ. पद्मनन्दी के शिष्य थे, दूसरी यह कि वे भ. शुभचन्द्रके भाई थे और तीसरी यह कि उनके उपदेश से वि. सं. १४९० से लगाकर सं १४९७ तक उक्त मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा हुई है । ६. जीवन - परिचय - भगवान् सकलकीर्तिके जीवनकालका बहुत कुछ परिचय जैनसिद्धान्त भास्कर में प्रकाशित ऐतिहासिक पत्रके निम्न अंशसे प्राप्त होता है, जो इस प्रकार है 'आचार्य श्री सकलकीर्ति वर्ष २६ छविसती संस्थाह तथा तीवारे संयम लेई वर्ष ८ गुरापासे रहीने व्याकरण २ तथा ४ तथा काव्य ५ तथा न्यायशास्त्र तथा सिद्धान्तशास्त्र गोम्मटसार तथा त्रिलोकसार तथा पुराणसर्वे तथा आगम तथा अध्यात्म इत्यादि सर्वशास्त्र पूर्वदेशमाहे रहीने वर्ष ८ माहे भणीने श्री वाग्वर गुजरात माहे गाम खोडेषे पधार्या, वर्ष ३४ संस्था थई तीवारे सं. १४७१ ने वर्षे.... साहा श्रीयौचाने गृहे आहार लीधो । तेहा थकी वाग्वरदेश तथा गुजरात माहे विहार कीधो । वर्ष २२ पर्यन्त स्वामी नग्न हता जुमले वर्ष ५६ छप्पन पर्यन्त आवर्या भोगवीने धर्मप्रभाववीने संवत् १४९९ गाम मेसाणे गुजरात जईने श्री सकलकीर्ति आचार्य हुआ ( भुआ ) पीछे श्री नोगामे संघे पदस्थापन करी । ( जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १३, पृ. ११३ ) इस ऐतिहासिक पत्रके उक्त अंशसे सकलकीर्ति के समग्र जीवनपर अच्छा प्रकाश पड़ता है और अनेक निर्णय प्राप्त होते हैं । अर्थात् सकलकीर्ति २६ छब्बीस वर्षको अवस्था तक घरमें रहे । तत्पश्चात् संयमको स्वीकार करके ८ वर्ष तक गुरुके पास रहकर व्याकरण, काव्य, न्याय और सिद्धान्त शास्त्रोंका अध्ययन करते रहे । चौंतीस वर्षकी अवस्थामें आप गुजरातके ग्राम खोडे पधारे। उस समय सं. १४७१ में आपने साह श्री योचा (पीचा ? ) के घर आहार लिया । इस उल्लेखसे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि आपका जन्म वि. सं. १४३७ में हुआ था, क्योंकि सं. १४७१ में आपकी आयु ३४ वर्षकी थी । इस प्रकार १४७१ में से ३४ घटा देनेपर १४३७ शेष रहते हैं । सकलकीर्ति २२ वर्ष तक नग्न मुनिवेषमें रहे। इस प्रकार उपर्युक्त ( २६ + ८

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