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प्रस्तावना
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१. सम्पादन प्रति परिचय - प्रस्तुत वर्धमान चरित्रका सम्पादन ऐलक पन्नालाल • दि. जैन
सरस्वती भवनकी तीन प्रतियोंके आधारसे हुआ है । उनका परिचय इस प्रकार है -
अ - इस प्रतिका आकार १२ x ५ इंच है । पत्र संख्या १३९ है । प्रत्येक पृष्ठपर पंक्ति संख्या ११ है और प्रति पंक्ति अक्षर संख्या ३५-३६ है । इस प्रतिमें अन्तिम पत्र नहीं है, जिससे ग्रन्थकारको प्रशस्तिका अन्तिम भाग छूट गया है । जितना अंश १३९ वें पत्रके अन्तमें उपलब्ध है, वह इस प्रकार है
'श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री कुन्दकुन्दान्वये भ. श्री पद्मनन्दिदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्री सकलकी त्तिदेवान्...' ।
यह प्रति अति जीर्ण-शीर्ण होनेपर भी बहुत शुद्ध है । यद्यपि इसके अन्त में प्रति लिखनेका समय नहीं दिया गया है, तथापि यह लगभग तीन सौ वर्ष प्राचीन अवश्य होनी चाहिए। सभी श्लोक पडिमात्रा में लिखित हैं ।
ब - इस प्रतिका आकार १०३ ४५३ इंच है । पत्र संख्या ७५ है । प्रत्येक पृष्ठपर पंक्ति संख्या १६ है । प्रति पंक्ति अक्षर संख्या ४४-४५ है । यह प्रति उक्त 'अ' प्रतिसे नकल की गयी प्रतीत होती है, क्योंकि उसमें जहाँ जो पाठ अशुद्ध या सन्दिग्ध है, ठीक वैसा ही पाठ इसमें भी है, तथा उस प्रतिमें जहाँ जो पाठ खण्ड या त्रुटित है, वह इसमें भी तथैव है । अन्तिम प्रशस्ति भी उसीके समान अपूर्ण है। हाँ, उसके आगे इतना अंश और लिखा हुआ है
'श्री....ल. पुष्करणा ज्ञाती व्यास बंनसीधर मंछाराम रेवासी नागौर... तेलीवाड़ ।' इस प्रतिका कागज पुष्ट है और लिखावट लगभग १५० वर्ष पुरानी प्रतीत होती हैं ।
स- इस प्रतिका आकार ११ x ५३ इंच है। पत्र संख्या ८७ । प्रति पृष्ठ पंक्ति संख्या १० है और प्रति पंक्ति अक्षर संख्या ३९-४० है । यह प्रति अपूर्ण है । इसमें प्रारम्भके यह वि. सं. १९८२ के वैशाख वदी १० को लिखी गयी है । लेखक हैं इस बात का है कि लेखकने अपूर्ण ग्रन्थको पूर्ण कैसे मान लिया ?
१३ ही अधिकार लिखे गये हैं । नूपचन्द जैन पालम ( देहली ) ।
उपर्युक्त तीन प्रतियोंके अतिरिक्त सरस्वती भवनमें पुरानी हिन्दी में लिखित एक और हस्तलिखित प्रति है जिसमें मूल श्लोक तो नहीं हैं, पर अनुवादक्रमसे श्लोक संख्या दी हुई है। तथा अनुवादके अन्तमें उसका ७७०० श्लोकप्रमाण परिमाण भी लिखा है । इसका आकार १०३ X ५३ इंच है । पत्र संख्या ३२३ है | प्रति पृष्ठ पंक्ति संख्या ८ है और प्रति पंक्ति अक्षर संख्या ३५-३६ है । इसके अन्तमें लेखन-काल नहीं दिया है, तो भी कागज, स्याही आदिसे १०० वर्ष पुरानी अवश्य प्रतीत होती है ।
२. वर्धमान चरित - जहाँ तक मेरी जानकारी है, दि. सम्प्रदाय में भगवान् महावीरके चरितका विस्तृत वर्णन सर्वप्रथम गुणभद्राचार्यने अपने उत्तरपुराण में किया है । तत्पश्चात् असग कविने वि. सं. ९१० में महावीर चरितका संस्कृत भाषा में एक महाकाव्य के रूपमें निर्माण किया । इसके पश्चात् संस्कृत भाषा में प्रस्तुत महावीर - चरितको लिखनेवाले भट्टारक सकलकीर्ति हैं । इस प्रकार संस्कृत भाषा में निबद्ध उक्त तीन चरित पाये जाते हैं ।
प्राकृत भाषामें किसी दि. आचार्यने महावीर चरित लिखा हो, ऐसा अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। हाँ, अपभ्रंश भाषा में पुष्पदन्त - लिखित महापुराण में महावीर चरित, जयमित्तहल्लका वडमाणचरिउ, विबुध श्रीधरका व माणचरिउ और रयधू कविका महावीरचरिउ, इस प्रकार चार रचनाएँ पायी जाती हैं ।
राजस्थानी हिन्दी भाषा में छन्दोबद्ध महावीररास भट्टारक कुमुदचन्द्रने लिखा है जो कि भ रत्नकीर्ति के
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