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248) खुशामदी व्यक्ति का विश्वास नही करना । | 268) टीका करने की बजाय प्रशंसा करो, अच्छे
शब्दों की कोई कीमत नहीं। 249) अफवाहों को सत्य नही समझना । 250) अति लोभ, यही पाप का मूल ।
| 269) आदत नौकर की तरह की हो तो अच्छी है,
मालिक की तरह की हो तो खराब है। 251) समय (जानेपर) बहुत समस्याओं का समाधान है।
270) विधेयात्मक को स्वीकार करो, नकारात्मक
को दूर करो। 252) तुम्हारे पास जो भी है, उससे खुश रहो ।
271) दो समकक्ष (शक्तिशाली) व्यक्ति के बीच 253) तुम्हारे भागीदार को पसंद करने में सावधानी
में मैत्री नहीं होती है। रखो।
272) कोई कार्य करने के बाद पश्चाताप होता है , 254) संख्या की नहीं, गुण की कीमत है।
तो पापा 255) गर्व आया नही, कि पतन शुरु । | 273) कोई कार्य करने के बाद आनंद होता है, 256) बाते करनेवाले लोग काम कम करते हैं। तो पुण्य । 257) तुम्हारी सहमति के बिना तुम्हारे को कोई | 274) गत वर्ष की सांसो पर मनुष्य जी नही नही बना सकता है।
सकता, और जी सकता है बीती पीढ़ी के 258) किसी व्यक्ति को खुश करना हो तो उसकी
विचारों के ऊपर । बातें शान्ति से सुनो।
1) रोज रोज कुछ न कुछ सीखो - तो 259) जब टेबल और कुर्सी को अलग करना हो ___ तुमको ज्ञान मिलेगा।
तो, कुर्सी को हटाने में बहुत लोग तैयार 2) रोज-रोज कुछ रचना करो, तो तुमको रहते है।
मूल्य समझ आवेगा । 260) तुम्हारे पड़ोसी को तुम चाहो जरुर, परन्तु 3) प्रत्येक के प्रति आदर भाव रखो - तो
दो घर के बीच की दीवार को मत हटवाओ । __ तुमको सद्भाव मिलेगा। 261) जो मनुष्य सभी को अच्छा बोलता हो तो | 275) दो प्रसंगो में मस्तिष्क को समान धारा में उसका विश्वास नही करना ।
बना कर रखो। 262) तुम्हारी कार्य की क्षमता को गुप्त रखो, वही 1) जब आपने बड़ी सफलता प्राप्त की हो
सबसे बड़ा कौशल है। 263) लेनदार, देनदार का मालिक बन जाता है । 2) जब खराब तरीके से निष्फलता प्राप्त 264) खेल मे हार-जीत का जितना महत्व नही है,
की हो। तुम किस तरह खेले, उसका महत्व है। | 276) 'अनुभव', ये सबसे महंगा शिक्षण है, और 265) प्रत्येक अन्त नही, शुरुआत है।
मूर्ख लोगों के लिए ही है, समझदार मनुष्य
तो दूसरों के अनुभवों से सीखता ही रहता 266) समय पर टांका, नये टांके को बचाता है। 267) उत्साह में बीज है, सफलता का ।
और