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223. थोडी सी अनुकूलता - प्रतिकूलता पाकर
काम क्रोध आदि का उमड़ आना आंतरिक
कमजोरी का लक्षण है। 224. गुस्से में आदमी अपने मन की बात नहीं
कहता, वह केवल दूसरे का दिल दुःखाना चाहता है। क्रोध अत्यन्त कठोर होता है, वह देखना चाहता है कि मेरा एक-एक वाक्य निशाने पर बैठता है या नहीं। ऐसा कोई घातक शस्त्र नहीं है, जिससे बढ़कर काटनेवाले यंत्र उसकी शस्त्रशाला मे न हो, लेकिन मौन वह मंत्र है जिसके सामने गुस्से की सारी शक्ति विफल हो जाती है,
मौन उसके लिए अजेय है। 225. क्रोध आता है, दुर्बल को, आर्थिक दृष्टि
से कमजोर को, प्यासे को, भूखे को, सम्मान की आकांक्षा वाले को, तपस्वी को, बीमार
को या फिर कर्मो के कारण। 226. क्रोध अग्नि है, वह तन और मन को जलाता
है। समता के अमृत रस से उसे शांत करने
का प्रयास करो। 227. समझाने - बुझाने से जिसका गुस्सा शांत
नहीं होता, जीवन में बहुत सारी ठोकरें खाने के बाद उसका गुस्सा सुगमता से
शांत हो जाता है। 228. क्रोध, बेकाबू गुस्सा आने पर भोजन से
रुचि हट जाती है। 229. चेहरे की सौम्यता चली जाती है और उग्र
चेहरा दिखने लगता है। 230. क्रोध के आवेश में बोलने पर संयम, संयम
नहीं रहता। कहां और क्या बोलना है। यह
भी संयम नहीं रहता है। 231. अपनों से बड़ो का अनादर होता है और
बाद में पश्चाताप करना पड़ता है।
232. समन्दर के पानी से नमकीन स्वाद की तरह
ही क्रोधी मनुष्य के अन्तः करण से मलीनता निकालना असंभव है। क्रोध के वश में मनुष्य
का चित्त अप्रसन्न रहता है। 233. फ्रिज में रखा पानी जिस तरह बर्फ बन
जाता है, उसी प्रकार मानव का मन क्रोध
दुश्मनी में बदल जाता है। 234. क्रोध से शत्रुता से हिंसा और हिंसा से पाप
का निर्माण होता है। गुस्से से हासिल कुछ नही होता हम बहुत कुछ खो जरुर देते है। इसलिए चलिए, गुस्सा थूकिए, खुश हो जाइए। क्रोध को जीतने का सूत्र दबाना नहीं, देखना सीखो । विलम्ब करो। क्षेत्र त्याग । चिन्तन की साधना । मौन हो जाना । नमस्कार मंत्र उल्टा गिनना शुरु कर दें। क्रोध आवे तो मुँह में गरम या धोवन पानी रख ले। क्रोध के समय धर्म मंत्र का जाप करें। संवत्सरी पर्व - साकेत - इन्दौर सुश्री डॉ. कंचन जैन, दिल्ली संयोजक : प्रस्तुतिकरण : सूत्र विनय स्वाध्याय मंडल P-5, II Floor, नवीन शाहदरा दिल्ली - 110 032