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( सामायिक ज्ञान - 2
उसका महाफल केवल ज्ञान प्राप्त किया । तब से
लेकर 2,500 से भी अधिक वर्ष बीत जाने पर अब 1) सामायिक कहाँ से शुरू हुई ?
तक लाखों साध साध्वियों व करोड़ो श्रावक वर्तमान काल की सामायिक 24 वें तीर्थंकर श्राविकाओं ने की। भगवान महावीर से शुरू हुई। उन्होंने स्वयं सामायिक
4) सामायिक कौन करते है ? की, केवल ज्ञान प्राप्त किया, परिषद में सामायिक सुनाई।
निरंतर ज्यादा दःख वाले व निरंतर ज्यादा
सुख वाले प्राणी सामायिक नहीं करते; सुख दुःख 2) सामायिक कब से लेकर कब तक है?
वाले प्राणी ही सामायिक करते है। नरक के नारकी. . श्रमण भगवान महावीर द्वारा दीक्षा लेने पर | देवलोक के देवता सामायिक नहीं कर सकते, केवल मृगसिर कृष्ण दशमी के दिन कुण्डल पुर से सामायिक | तीर्थंकर भगवान के धर्म पर रूचि व श्रद्धा रखने शुरू हुई, 12 वर्ष के पश्चात 13 वें वर्ष में वैशाख । वाले मनुष्य करते है व कोई-कोई पशु पक्षी (हाथी शुक्ल दशमी के दिन ऋजु बालुका नदी के तट पर | मेंढ़क) आदि भी करते हैं । तीर्थंकर भगवान से तो भगवान की सामायिक का महाफल केवल ज्ञान | शेर बकरी सर्प नेवला आदि भी धर्म सनते थे । प्राप्त हुआ, व एकादशी के दिन (केवल प्राप्ति के जिन्हें अपनी आत्मा के हित की इच्छा होती है, जो अगले दिन) अपापा नगरी में देवों द्वारा रचित | अपना यह जन्म उत्तम गुणों वाला अच्छा बनाना दिव्य, चमकदार, बहुत सुंदर समवसरण में भगवान | चाहते है; परलोक में भी सुगति, सुख चाहते हैं, द्वारा सामायिक का पहला उपदेश किया गया । । देव बनना चाहते है, सच्ची शान्ति पाना चाहते हैं, तब से लेकर आज तक सामायिक चली आ रही है । केवल ज्ञान पाना चाहते हैं, सब दुःखों का नाश व इस पंचम आरे के 21,000 वर्ष पूरे होने तक, - करना चाहते हैं, धर्म का विनय करते हैं, वे खुशीअन्तिम दिन तक सामायिक आगे से आगे बढ़ती खुशी सामायिक करते हैं। रहेगी।
5) सामायिक में किन गुणों की प्राप्ति होती है ? 3) सामायिक कितने प्रकार की होती है ?
संसार के सब कार्यों, चिंताओं को छोड़कर सामायिक दो प्रकार की होती है - 1) साधु
शान्ति से सामायिक में मन लगाने से, सभी 18 सामायिक अर्थात अणगार सामायिक 2) श्रावक पापों का त्याग करने से समकित शुद्ध व दृढ़ होती सामायिक अर्थात अगार सामायिक | साधु सामायिक है, एक भी जीव की हिंसा न करने से सब जीवों की अखण्ड रूप से जीवन भर के लिए धारण की | महादया होती है, राग और द्वेष नष्ट करने से जाती है व श्रावक सामायिक प्रतिदिन कम से कम समभाव की अच्छी साधना होती है, आदर, सत्य, एक मुहुर्त के लिए धारण की जाती है | साधु संतोष, धैर्य, एकाग्रता, गुण दर्शन की प्राप्ति होती सामायिक पांच महाव्रत रूप अखण्ड मोती के है, एक मुहुर्त के लिए साधु समान संयम की समान है व श्रावक सामायिक 12 व्रतों में 9वाँ | प्राप्ति होती है । इससे आत्मा नये अशुभ कर्म नहीं व्रत, स्वर्ण समान है । साधु सामायिक सर्व प्रथम | बांधती, पुराने कर्म क्षय करती है व नये शुभ कर्मो इन्द्र भूति गौतम स्वामी जी ने भगवान के मुखारविंद | का बंध करती है । जिससे दुःख नष्ट होते हैं, से सुनकर ग्रहण की व भगवान का निर्वाण होने पर | सुख-सच्ची शान्ति व मोक्ष प्राप्त होते है।