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बनाकर एक ही बार में भर सकता है, इतनी उसकी ऐसा आश्चर्यकारी विचित्र होता है, शक्ति है, परन्तु उसने इतना कभी नहीं किया वह
। केवली भगवान का केवल ज्ञान एक लाख योजन का गोल क्षेत्र एक दूसरे के साथ जुड़े हुए, बहुत रूपों से भरता है" | भगवती सूत्र । ऐसा कोई भी रहस्य नही, गुप्त भाव नहीं, हे भगवान ! ज्ञान कितने प्रकार का होता है? हे जो केवली भगवान के ज्ञान में प्रकट न हो । सब गौतम! ज्ञान पांच प्रकार का होता है 1) अभिनिबोधक
जीवों के उत्पति स्थानों, आयु, जीवन, मन के ज्ञान (मतिज्ञान) 2) श्रुत ज्ञान 3) अवधि ज्ञान 4)
सब भावों को जानने वाले, लोक के भीतर व लोक मनःपर्यव ज्ञान 5) केवल ज्ञान । भगवती सूत्र । हे
| के आर पार के भी सब पदार्थो को सर्व जानने भगवान ! वनस्पति कितने जीवों वाली होती है? - वाले, सर्व भूतकाल, वर्तमान काल, सर्व भविष्य "हे गौतम! वनस्पति तीन प्रकार की होती है - 1) काल जानने वाले, पूर्व जन्म, भविष्य के जन्म, संख्यात् जीवों वाली 2) असंख्यात जीवो वाली 3)
सबके सब कर्मो के भिन्न भिन्न फल बताने में अनंत जीवों वाली । “हे भगवान! वायुकाय के जीव
समर्थ होते है, केवली भगवान ! जिनके सर्व वचनों बड़े होते है या पृथ्वीकाय के"? “हे गौतम! पृथ्वीकाय
में अंश मात्र भी भूल की सम्भावना नहीं होती, सर्व के जीव वायुकाय के जीवों से असंख्य गुणा बड़े
वचन पूर्णतया व्याकरण से शुद्ध, आश्चर्यकारी शैली होते है" | "हे भगवान! एक अंगुल मात्र मिट्टी में
में प्रश्नकर्ता व श्रोताओं की समझ में आसानी से पृथ्वीकाय के असंख्य जीव होते है" | "हे भगवान, आ सकने वाले होते है, ऐसे मधुरभाषी, हितभाषी, खोदने-पीसने पर वे कैसी पीड़ा का अनुभव करते कल्याणभाषी होते है, केवली भगवान जो प्रश्नकर्ता है? हे गौतम! कोई बलवान पुरूष जीर्ण शरीर वाले
के पूछने से पहले ही उसका प्रश्न व उत्तर कहने में वृद्ध पुरुष के मस्तक पर मुक्के से तीव्र प्रहार करे, समर्थ होते है। ऐसे विचित्र प्रश्नों, उत्तरों, ज्ञान तो जैसी पीड़ा उस वृद्ध पुरूष को होती है, ऐसी ही
का विचित्र संग्रह है आगम, जिनकी गणधर भगवंतो पीड़ा पृथ्वीकाय आदि जीवों को होती है । भगवती
ने विशिष्ट लब्धियों से युक्त होकर भगवान महावीर सूत्र ।
के वचनों का, वचन-रत्नों का संग्रह करके रचना
की । उन्हीं श्रमण भगवान महावीर ने दर्शाया, सूर्याभ देव ने भगवान महावीर के चरणों में आकर
सृष्टि का रचयिता कोई नहीं है । सभी पदार्थ वंदना की और पूछा - "हे भगवान! मैं सौधर्म देवलोक
अपने अपने स्वभाव के अनुसार उत्पन्न होते है, का सूर्याभ देव भव्य हूँ या अभव्य? सम्यग दृष्टि हूँ
व्यय होते है, सदा काल रहते हैं। इस प्रकार सभी या मिथ्यादृष्टि? एकाभवतारी हूँ अथवा अनेक
पदार्थ अनादि अनंत है । केवली का ज्ञान अनंत भवतारी अथवा अणंत संसारी?" - "हे सूर्याभ |
,लोक के पार है, महा मति भंडार है, सागर तुम भव्य हो, सम्यग् दृष्टि हो, एक ही जन्म मनुष्य
अपार है, रत्न भंडार है, शुद्ध अपार है, सार ही का पाकर सिद्ध हो जाओगे? राजप्रश्नीय सूत्र । “हे
सार है, सत्य अपार है, सर्व संवार है । सत्य है भगवान! अशुभ भावनाओं वाले पक्षी कौन सी नरक
भगवान | आप जैसे महाज्ञानी, महासरल, तक और शुभ भावनाओं वाले पक्षी कौन कौन से
महासत्यधारक, महाकुशल, महालब्धिधर, देवलोक तक जा सकते हैं"? “हे गौतम! अशुभ
महाहितकारी, महाकल्याणकारी की समानता करने भावों वाले पक्षी मरकर तीसरी नरक तक उत्पन्न
वाला, इस लोक में कोई दूसरा कहाँ ? आपके हो सकते है और शुभ भावों वाले उच्च आठवाँ
विश्वासी का तो अवश्य ही भव सागर पार है। देवलोक तक जा सकते है प्रज्ञापना सूत्र । ।
भूल मि. दु तत्व केवलीगम्य