Book Title: Vinay Bodhi Kan
Author(s): Vinaymuni
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sangh

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Page 264
________________ मद करने से, 7. लाभ मद करने से, 8. ऐश्वर्य मद करने से नीचगोत्र बंध होता है, उच्चगोत्र 8 प्रकार के मद नहीं करने से बंधता है। 343. अन्तराय कर्म का 5 प्रकार से बंध होता है यथा दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य इन 5 में अन्तराय करने से बंधता है। 344. “कृत्सन कर्म क्षये” अर्थात सम्पूर्ण कर्मो क्षय मोक्ष है। 345. सकल कर्म वियोगे सर्व कर्माभाव लक्षणे निर्वाणे। 346. जीव का शुद्ध स्वरुप ही मोक्ष है। 347. मोचन कर्म पाशः वियोजनम् आत्मनो मोक्षः । 348. सम्यक, दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः । 349. “बंध वियोगो मोक्षः” जहाँ कर्मों के बंध का वियोग है। 350. सिद्ध- परमात्मा को मोक्ष तत्व में गिना जाता है। 351. मोक्षः मो = मोह। क्ष = क्षय, अर्थात जिसका मोह कर्म क्षय हो जाता है वही मोक्ष कहलाता है। 352. जन्म - मृत्यु वर्जित अवस्था मोक्ष है। 353. एकान्त सुख संगत (अव्याबाध सुख) मोक्ष है। 354. जहाँ दुःख. संभिन्न हो गया है, दुःख रहित अवस्था मोक्ष है। 355. अन्न, पाण, श्वास, इन्द्रिय आदि रहित अवस्था मोक्ष है। 356. मोक्ष अर्थात सदा सदा “स्वस्थ” अवस्था रहती हो, सदैव आरोग्य में ही रहता है। 240 357. स्वाभाविक सुख होता है, तथा भय का विवर्जन मोक्ष है। 358. उपमा का अभाव रुप अवस्था मोक्ष है। 359. अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंत सुख तथा अनंत शक्ति रुप अवस्था मोक्ष है। 360. समाधिराज, आत्म दर्शनी, अक्लेशित सदैव होते है। 361. अशरीरी, अक्षयस्थिति, अगुरुलघु तथा सदैव अदुःखी रहते है। 362. अंतिम गुण स्थान ( 14वाँ ) के अंतसमय में 4 अघाती कर्मों को क्षय करके आत्मा एक समय में उर्ध्व लोक के ऊपर के भाग में चली जाती है, उसे “मोक्ष” कहते है। . 363. लोकाग्र में सिद्ध शिला के ऊपर अनंतानंत सिद्ध परमात्मा रहते हैं। 364. मोक्ष के साधनों / कारणों को भेद माने गये है। 365. मोक्ष के 4 भेद यथा 1. सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, 3. सम्यक चारित्र, 4. सम्यक तप। 367. सिद्ध जीवों के उत्पन्न होने का विरह जघन्य एक समय उत्कृष्ट छह मास का होता है। 368. एक समय में जघन्य एक उत्कृष्ट 108 जीव मोक्ष जा सकते हैं। 369. अलोक से प्रतिहत है, लोक में रहते है, तिरछे लोक में शरीर छोड़ते है तथा लोकाग्र में सिद्ध कहलाते है। 370. पारिणामिक व क्षायिक भाव में सिद्ध रहते है। 371. अनंतानंत सिद्ध साथ रहते है, जैसे बिजली के बल्वों का प्रकाश।

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