Book Title: Vinay Bodhi Kan
Author(s): Vinaymuni
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sangh

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Page 332
________________ दो शब्द "गण न हो तो रूप व्यर्थ है, विनम्रता न हो तो विद्या व्यर्थ है, उपयोग न हो तो धन व्यर्थ है, साहस न हो तो हथियार व्यर्थ है, भूख न हो तो भोजन व्यर्थ है, होश न हो तो जोश व्यर्थ है, छू न पाये जो आचरण को तो, वो संस्कार व्यर्थ है।" जीवन में क्या - कितना हम व्यर्थ कर रहे हैं यह जान पाने की दृष्टि पू. गुरुवर विनय मुनिजी के सानिध्य से पाई। जीवन को एक नये नजरिये से देखने, तौलने व जीने का अंदाज पाया। जैन दर्शन की गहराई व सूक्ष्मता को समझने का सुअवसर मुनिश्री की निश्रा में पाया। जो पाया उसको बांटने का अपना निराला आनंद है। चातुर्मास के पावन दिनों में सत्संग का लाभ सहज ही सुलभ हो जाता है किन्तु शेषकाल में सहयोगी होती है “सत्संग की सुरभि"। बस इसी सुरभि को शाश्वत रखने के उद्देश्य से इस संकलन की इच्छा बनी। चातुर्मास के दौरान मुनिश्री ने जो भी प्रश्न चलाये, उनका संकलन प्रस्तुत हैं। “विनय - बोधि · कण" के रूप में । स्वप्न से साकार तक की भूमिका में मैं समस्त सहयोगियों का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ. विशेष रूप से मैं श्री योगेन्द्र भैय्या को साधुवाद देना चाहती हूँ, जिन्होंने ये काम पूरा अपना समझ कर किया। अतः में गुरुदेव से अंतस के भावों से क्षमायाचना अपने किसी भी अविनय अविवेक के लिए। “सौ - सौ सूरज उगे, चंदा उगे हजार, चाँद - सूरज हो फिर भी, गुरू बिन घोर अंधार ।" सभी को प्रकाश मिले बस यही भावना .... संगोई हॉल, रायपुर - श्रीमती दीपा विजय संगोई दिनांक : २८-११-१९९८ (आद्य संपादन) अपना क्या है इस जीवन में, सब कुछ लिया उधार । सारा लोहा उन लोगों का, अपनी केवल धार ।।

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