Book Title: Vinay Bodhi Kan
Author(s): Vinaymuni
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sangh

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Page 333
________________ | "विनय बोधि कण" पर सम्मति १. 'विनय बोधि कण' भाग दूसरा, १०.जी करता है एकबार ही, ४. जैनागम से ज्ञान गहन को, तीजा, चौथा, देखे साथ, पढ़लें पुस्तक सारी जी। ऐसा अहो! निचोड़ा है। 'प्रश्न उठाकर उनके 'उत्तर', नहीं छोड़ने को मन करता, लगता है, न विषय सामयिक, दिये गये है फिर साक्षात।। लगती ऐसी प्यारी जी ।। शेष एक भी छोड़ा है।। २. ज्ञान बढ़ानेवाली शैली, ११.हर इक घर क्या, हर इक कर पर, ५. प्यारे पाठक जैन तत्त्व को, जो अनुपम अपनाई है, भाग सभी है रहने योग। ऐसा इससे पायेंगे। सभी परख हाथ कहेंगे, लाभान्वित अति होंगे इनसे, जन साधारण से साधारण, करनी कठिन बड़ाई है।। यों गुणग्राही लाखों लोग।। विज्ञ बड़े बन जायेंगे।। ३. आगम सम्मत इन भालों में, १२.विनयमुनिश्वर ‘खींचन' जिनको, नहीं छोड़ने को मन करता, है जो ज्ञान-खजाना जी। कहते सादर सारे लोग। इस पुस्तक को लेकर हाथ। गागर में ही सागर जैसे, प्रबल प्रणेता इन भागों के, जी करता है पढ़ते जायें, कोई नहीं ठिकाना जी।। परम प्रशंसा के हैं योग।। दिन देखें, न देखें रात।। ४. आगम-गैय्या मैय्या का जो, १३. 'ज्ञान गच्छ' के अधिपति मनिवर, ७. विनय मुनि जी 'खींचन' सादर, मधु-सा दूध निराला है, चम्पालाल तपस्वीराज। सारे कहते जिनको लोग। उसको मथकर 'उत्तर' रूपी, इनके ही आशीर्वाद से, उनने दिये 'रायपुर' भाषण, यह नवनीत निकाला है।। उन्नत विनय मुनिश्वर आज।। सचमुच परम प्रशंसा योग।। ५. जो भी इसको खाये उसको, १४.लखकर कृतियाँ कथा-कला की, ८. उगनी सौ अट्ठाणु सन का, अमर बनाने वाला है। मन न खुशी समाई है। अमर हो गया वह चौमास। ऐसा अनुपम अमृत हमने, "चन्दनमुनि” पंजाबी देता, संग्रह कर्ता जैन संघ को, देखा है न भाला है।। लाखों-लाख बधाई है।। लाखों-लाखों है शाबाश।। एक-एक हम कहें भाग को, ऐसा शिष्य मिला है जिनको, कविराज की सम्मति ज्ञान-गुलों का दस्ता है। जिसकी मिलती नहीं मिसाल। एक 'प्रश्न' हर 'उत्तर' उसका, कवि रत्न श्री चन्दन मुनि (पंजाबी) धन्य हो गये महा तपस्वी, लाखों में भी सस्ता है।। १. विनय बोधि कण भाग प्रथम का। गुरुवर प्यारे चम्पालाल।। चारों भागों को जो सादर, १०. हरइक घर पर हरइक कर पर, प्रिय पाठक पढ़जायेंगे। द्वितीयावृत्ति पाई है। पुस्तक है यह रहने योग। ज्ञान-गगन में ऊँचे-ऊँचे, पुस्तक क्या है? सुधा-धार-सी, होंगे परम प्रशंसा पातर, नजर हमें तो आई है।। बहुत बहुत चढ़जायेंगे।। इसको पढ़ने वाले लोग।। २. नौ पद जैसे नौ ही भाषण, ८. अति कम क्षम का लाभ बड़ा , ११. ऐसी प्यारी पुस्तक पर कुछ, जब आ जायेगा अपने घर। आए इसमें सारे हैं। लिखने को जब पाता है। होने वाले हृदय-हर्ष की, एक-एक से बढ़कर-चढ़कर, नये-निराले-न्यारे हैं।। “चन्दन मुनि” पंजाबी के, कुछ भी तो न पूछे बात।। न मन में मोद समाता है।। ९. क्या बतलायें इन भागों की , ३. ज्ञान बढ़ाने समझाने का, सरल सरस क्या भाषा है। प्रश्न और उत्तर का ढंग। लिया गया है इसमें जो बस, - कविरत्न श्री चन्दन मुनि इनके सम्मुख मिश्री का भी, फीका पड़ा पताशा है ।। देख-देख है मति अति दंग।। (पंजाबी) ६. ७

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