Book Title: Vinay Bodhi Kan
Author(s): Vinaymuni
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sangh

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Page 291
________________ 406. सामायिक अर्थात कषाय मन्दीकरण ज्यों | है; परन्तु ऐसा न समझे कि हिंसा असत्य ज्यों साधक का कषाय मन्द होता जाता है, एवम् पापों की प्रशंसा करता होवे, यदि उसके कर्म बन्ध भी मन्द होते जाते है। पापों की खुले आम प्रशंसा आदि करे तो 407. दसवें गुण स्थान तक “सम्पराय बंध" (कषाय) सामायिक के भाव आना ही असंभव है। माना है। 11,12,13 वे गुण स्थानों में मात्र 414. भगवती सूत्र में गृहस्थी सामायिक में रहा योगों से बंध होता है। हुआ भी ममत्व नहीं छोड़ने से सूक्ष्म रुप 408. आचार्यों ने दो घड़ी (मुहूर्त) प्रमाण समय से सावध की क्रिया लगती है। श्रृंखला देशविरतिका काल मान नियत किया है। टूटी नहीं है। (सामायिक का) 415. साधक दुकान-कारखानों-परिग्रहादि की तो 409. सामायिक में “अनुमोदन" खुला होने पर 'सामायिक' में प्रशंसा प्रेरणा करता ही नहीं भी पाप या “सावद्य” की अनुमोदना में रस नहीं लेना चाहिये। 416. वस्तुतः आत्मा स्वभावतः क्षमाशील, विनम्र 410. श्रावक गृहस्थ में होने से उसका एक पांव है सरल है, संतोषी ही है, परन्तु कर्मो के संसार मार्ग में है तो दूसरा पाँव मोक्ष मार्ग सम्पर्क (उदय) से क्रोधी, मानी, मायावी में है, पूर्ण त्यागी न होने से 'अनुमोदन' और लोभी बना हुआ है, स्वभाव अपने खुला है। ममता का तार पूरी तरह नहीं आप होता है, विभाव दूसरों के सम्पर्क से टूटा होता है। होता है, जैसे पानी तो शीतल ही होता है, परन्तु आग के सम्पर्क से उष्ण हो जाता है, 411. निन्दा चाहे अन्य की करें, चाहे अपनी आग से सम्पर्क हटने पर पुनः अपने आप करें, निन्दा से मन में हीनता-मलीनता शीतल हो जाता है। उदासीनता आती है, जिसमें पर की निन्दा तो जघन्यतम कार्य है, दूसरों की बुराइयों 417. आत्म निन्दा करता हुआ पश्चाताप करताको रस लेकर करना तो “सुअर वृति" है। करता गुण श्रेणियाँ आरोहण करता-करता वीतरागी बन जाता है। 412. निन्दामि = निन्दा = यहाँ मात्र पापों की निंदा जाती है। अपने दुर्गुणो की निन्दा करनी 418. सावधानी रहे कि आत्म निन्दा पश्चाताप तक ही रहे, ऐसा न हो जावे कि पश्चाताप ही चाहिये, निन्दा करते-करते पश्चाताप व प्रायश्चित के भाव पैदा होने ही चाहिये, की ‘मंगल सीमा' उल्लघंन करके शोक ग्रस्त तभी निन्दामि गरिहामि' हमारी आत्मा हो जावे। (दबाव या तनाव) में न आ जावें। को हल्का (कर्मो से) बनाएगी, मानसिक 419. पश्चाताप आत्मा को सबल बनाता है परन्तु शांति बढ़ेगी। शोक निर्बल बनाता है, भयभीत बनाता है। 413. सामायिक में श्रावक परिवार परिग्रह से नाता | 420. शोक में साहस का अभाव तथा कर्तव्य नहीं तोड़ा होने से “अनुमोदना” खुली रहती बुद्धि का शून्यत्व हो जाता है। “शून्य-आकाश वत् न बनें" (शिक्षा)

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