Book Title: Vinay Bodhi Kan
Author(s): Vinaymuni
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sangh

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Page 304
________________ "विनय बोधि कण" नामक तत्व ग्रंथ प्राप्त हुआ है। यह तत्व ग्रंथ हमारे जैनबंधु हाथोंहाथ पढ़ रहे हैं। जब से प्राप्त हुआ है तब से अपने जैन बंधुवर ही पढ़ रहे हैं। अतः आपसे पुनःश्च सविनय निवेदन है कि “विनय बोधि कण" की दो पुस्तकें भेंट में स्वाध्यायार्थ शीघ्र ही प्रेषित करने की कृपया व्यवस्था एवं सहयोग कीजिए। मैंने अभी तक पूरा ग्रंथ पढ़ा नहीं है क्योंकि जब मेरे पास पढ़कर आता है तो दूसरे जैन बंधु उसी समय मुझसे स्वाध्यायार्थ ले जाते है। आपको जिनशासन, समाजसेवा कार्यार्थ कोटिशः हार्दिक धन्यवाद। कष्ट के लिए क्षमा कीजिए। श्री अरविंद नरेंद्रजी जैन, जैन संस्कृति शिक्षा एवं जैन ग्रंथालय, दौंड (पुणे) (M.S) 'चा नीलगीरि में कूनूर - बना धर्म में नूर चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के चरणों में कोटि कोटि वंदन। गुरुवर श्री विनयमुनिजी के चरणो में वंदन करने के बाद आप सभी की अनुमति से दो शब्द कहना चाहता हूँ। संसार में संयोग-वियोग का चक्र हमेशा चलता रहता है। जब हमारे अहो भाग्य से गुरुवर का संयोग और चातुर्मास मिला तो घर घर में खुशियों की शहनाई बजने लगी, और श्रद्धालुओं की मन कली खिल उठी। कहते है तीर्थंकर परमात्मा सूरज है तो सद् गुरुदेव । दीपक होते हैं। सूर्य के अभाव में जैसे दीपक रोशनी डालता है, उसी तरह हमारे अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने के लिए गुरुवर असीम परिश्रम तथा प्रयास करते रहे। सबने सच्चे धर्म का रूप देखा। जाना, पहचाना और उसका कुछ पान भी किया। गुरुदेव ने अपने प्रवचनों में जिनवाणी की गंगा बहा दी थी। कभी कभी तो अमृत वाणी का प्रवाह ऐसा उमड़ पड़ा मानो गंगा भी गरजते लहरों के समुद्र समान दिखने लगी। अवसर पाकर कुछ भाग्यशालियोनें जोरदार डुबकी लगाकर अपना जन्म जन्म का मैल धो डाला। कोई सिर्फ हाथ पाँव धो कर संतुष्ट हो गए तो बाकी अभी तक समुद्र तट पर बैठकर लहरें शांत होने का इंतजार कर रहे है। अब वियोग के पल निकट आ गये हैं तो हमारे दिलों में सुख दुःख की लहरें उठने लगी है। सुख इस बात का कि यह चातुर्मास सानंद संपन्न होने जा रहा है, और दुःख इस बात का कि पूज्य श्री विहार करके दूर चले जायेंगे। हर दिल एक अनोखा दर्द महसूस कर रहा है। गुरुवर! आपने हर एक दिल में धर्म का बीज बोया है। अब बीज वृक्ष बनकर धर्म छाया दे तब तक उसे संभालना होगा। राजगिरि नगरी के लोग जैसे भी थे- योग्य मोती या नादान - उन्हें तारने के लिए भगवान महावीर वहाँ बारबार गये और करीब १४ चातुर्मास किये। उसी प्रकार, चाहे आपकी कसौटी पर कुन्नुर वासी कैसे भी निखरे हो, हमे तारने के लिए यहाँ बार-बार आने की कृपा आप अवश्य करना, यही हमारी कर जोड़ विनती है। और यह हमारी प्रभु से प्रार्थना है कि आपका संयम जीवन हमेशा आनंद मय चलता रहे। गुरुवर! इन चार महिनों में हमारे व्यवहार से आपके हृदय को किसी भी तरह से चोट पहुँची हो तो मन वचन काया से क्षमा याचना करते हैं। इस ऐतिहासिक चातुर्मास के लाभार्थी श्री अशोक कुमारजी, सुरेशकुमारजी अंकित-श्रेयांश बोथरा परिवार तथा प्रमुख कार्यकर्ता लोग धन्यवाद के पात्र है। उनकी प्रशंसा जितनी भी करें वह कम होगी। उन्होंने तो कमाल का काम कर दिखाया है। हम उनका हार्दिक अभिनन्दन करते हैं।धन्यवाद! २००७, आशकरण लुणावत कुशुर नीलगीरी (त.ना) स्वाध्यायार्थ बहु उपयोगी छ। 'विनय बोधि कण' पुस्तक मली गयेल छे. आभार । बा.ब्र. समाज रत्न, कुमारपाल वि. शाह, वर्धमान सेवा केन्द्र, धोलका (गुज.) इस चातुर्मास को ऐतिहासिक बनाने में पूज्य गुरुवर तन-मन से लग गये और हर व्यक्ति का उत्साह बढ़ाने में तथा प्रेरणा देने में उन्होंने कोई कसर नहीं रखी। परिणाम यह हुआ कि एक तरफ तपस्या की ठाठ लगी तो दूसरी तरफ ४० लोगस्स, रामायण एवं नंदी सूत्र का पाठ सबको आकर्षित कर खींच लाये। बीच बीच में सैंकड़ो रोमांचक धर्म कथाओं के जरिए गुरुवर ने संसार कीचड़ में भी कमल की तरह जीने की कला सिखाई। फिर इस चातुर्मास का सिरताज बन के आया उत्तराध्ययन सूत्र का वांचन। पूज्य गुरुवर ने साक्षात समोसरण का माहौल बना दिया था। सुनने वाले धन्य हो गये। और सुधर्मा स्वामी रचित वीर थुई उस सिरताज की अमूल्य मणि बन गयी। ज्ञानियों का मानना है कि गुड़ से मीठी खांड़, खांड़ से शक्कर मीठी, शक्कर से मीठा अमृत और अमृत से भी मीठी जिनवाणी है। उस जिनवाणी का सार निचोड़कर अपनी मधुर भाषा मारवाड़ी में गुरुवर ने महान विषयों को सरल शब्दों में समझाया जैसे “भाव सुधारने से भव सुधरे", "दिशा बदलो तो दशा बदलेगी” “लंका में कोई दालिद्रि मत रहेजो" इत्यादि!

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