Book Title: Vinay Bodhi Kan
Author(s): Vinaymuni
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sangh

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Page 286
________________ अभिहया, वतिया, लेसिया, संघाइया, | देखा जाता है। उसी प्रकार आलोचना सूत्र संघटिया में भूलों की अशुद्धि को देखा जाता है। परियाविया, किलमिया, उद्दविया - ठाणाओ | 335. अशुद्धता को निकालने की प्रक्रिया “कायोत्सर्ग ठाणं पाठ" से समझाई गई है। संकामिया, जीवियाओ ववरोविया - कुल 336. कायोत्सर्ग पाँच कारणों से किया जाता है विराधना यथा 563 x 10 5630 1) राग और 2) द्वेष = 1. आत्मा की श्रेष्ठता-उत्कृष्टता के लिए। 5630 x 2 =11260 मन, वचन, काया (3 योग) 11260 x 3 = 2. प्रायश्चित के लिए। 33780 3. विशेष निर्मलता के लिए। करना, करवाना त 4. शल्य रहित होने के लिए। 33780 x 3 = 101340 5. पाप कर्मो को पूर्णतया नाश करने के भूत, भविष्य, वर्तमान, 3) काल 101340 लिए। x 3 = 304020 337. साधना और चंचलता का मेल नहीं है, पंच परमेष्ठि और आत्मा (अपनी) 304020 शरीर की चंचलता सर्व प्रथम रोकना, घटाना x 6 कुल 1824120 ही साधना की प्रथम सीढ़ी है। 5 +1 = प्रकार से मिच्छामि दुक्कड़ दिया 338. कायोत्सर्ग सूत्र का दूसरा नाम ‘उत्तरी गया है। करणेणं' का पाठ भी है। 332. मि = मृदुता, कोमलता तथा अहंकार रहितता के लिए है। 339. प्रायश्चित के अर्थ दिये गये है:- यथा छा = दोषों को छेदने त्याग । (छादने) A) प्रायः बहुत, चित्त मन अर्थात जीव के कर्म। मि = संयम मर्यादा में दृढ़ रहने के लिए। दु = पाप कर्म करने वाली आत्मा की निंदा B) पाप का छेदन करने वाला। के लिए है। C) चित्त की शुद्धि-करण करता है। क = कृत पापों की स्वीकृति के लिए है। D) प्रायश्चित कर लेने के बाद में जन मानस ड़ =उन पापों को उपशमाने के लिए, नष्ट में श्रद्धा की अपूर्व वृद्धि होती है। करने के लिए है। E) दूषणों से मलिन आत्मा शुद्ध होकर 333. जीव का पर्याय वाची शब्द इन्द्र है, ऐश्वर्यशाली पुनः स्व स्वरुप में उपस्थित होती है। जीव होता है अजीव नहीं, संसारी आत्माओं 340. सामान्यतः पाप करने वाला व्यक्ति को जो कुछ भी बोध होता है, वह सब जनमानस की नजरों में गिर जाता है, इन्द्रियों से ही होता है। लोग घृणा से देखते हैं, क्योंकि सामान्यतः 334. जिस प्रकार घर (गृह) की सफाई करने से जनता में आदर धर्माचरण का होता है, पहले कचरा कहाँ-कहाँ है, दिखाया या । पापाचरण का नहीं।

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