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3) चत्तारि परमं गाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो। | को जानो, अपनी आत्मा के समान सबको अपने माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमम्मि य वीरियं ।। अपने प्राण प्रिय है । मत्ति भूएसु कप्पए । सब
प्राणियों के प्रति मैत्री भाव धारण करो । अंश भी संसार परिभ्रमण करते हुए जीवों को चार परम अंग
दुःख न दो। दुर्लभ है - जिणवाणी के योग्य मानव जन्म, श्रवण, श्रद्धा, सुसंयम में पुरुषार्थ ।
7) इह कामाणियट्टस्स,अत्तढे अवरज्झइ । जो
विषय भोगो से निवृत्त नहीं होते उनका 'आत्मार्थ' 4) जे संखया तुच्छ परप्पवाई, ते पिज्जदोसाणुगया
नष्ट हो जाता है। परज्झा । एए अहम्मे त्ति दुगुंछमाणो, कंखे गुणे जाव सरीर
जेसिं तु विउला सिक्खा.... सीलवंता भेए ||3||
सविसेसा....|| शील की शिक्षा रहित आत्माएं
दुर्गति को जाती है; शिक्षित आत्माएँ सुगति पाती जो ये सांख्य आदि परमती हैं, इनका धर्म राग
है, विशेष शिक्षा प्राप्त और भी उच्च गति को पाती और द्वेषका छेदन नहीं करता । इस अधर्म से विमुख
हैं । कम्मसच्चा हु पाणिणो ।। प्राणियों के कर्म सत्य होते हुए जीवन भर जिणवाणी के गुणों की ही इच्छा
फल वाले है । जैसे शुभ अशुभ कर्म हैं वैसा ही फल करनी चाहिए।
है। 5) संति एगेहिं भिक्खूहि, गारत्था संजमुत्तरा ।
8) जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवठ्ठई दो गारत्येहि य सब्वेहिं, साहवो संजमुत्तरा ।। मास कयं कज्जं, कोडिए वि ण णिट्ठियं ।। कोई कोई गृहस्थ भी भिक्षुओं से संयम में उत्तम जहाँ लाभ होता है वहाँ लोभ होता है, ज्यों ज्यों होते है।
लाभ बढ़ता है, त्यों त्यों लोभ बढ़ता संयमी साधु सब गृहस्थों से संयम में उत्तम होते है ।
है। दो मासे सोने से सम्पन्न होने वाला कपिल का
कार्य करोड़ मोहरों से भी सम्पन्न न हो सका । बालाणं तु अकामं तु, मरणं असई भवे ।
9) चइऊण देवलोगाओ, उववणो माणुसम्मि पंडियाणं सकामं तु, उक्कोसेण सइं भवे ॥
लोगम्मि। अज्ञानी जीवों का चारों गतियों में अकाम मरण
उवसंत मोहणिज्जो, सरई पोराणियं जाई ।। होता है।
नमिराजऋषि का जीव देवलोक से आयु पूरी करके पंडितो (ज्ञानियों) का मनुष्य जन्म में सकाम मरण
मनुष्य लोक में उत्पन्न हआ | मोह शांत होने पर होता है । अकाम मरण बार बार व सकाम मरण
नमिराज को पूर्व जन्म का ज्ञान उत्कृष्ट एक ही बार होता है। सकाम मरण अनेक
हुआ।... दीक्षा के लिए उद्यत हुए नमिराज को इन्द्र बार हो तो अधिक नहीं होता है ।
ने ब्राह्मण के वेश में आकर दस प्रश्न पूछे। उनमें से 6) जावतंऽविज्जा पुरिसा, सब्वे ते दुक्ख संभवा...
एक "पासाए कारइत्ताणं वद्धमाण गिहाणि य । वालग्ग अज्ञानियों के लिए ही है। पास जाई पहे बहु....
पोइयाओ य, तओ गच्छसि खत्तिया ।। हे नमिराज
सुन्दर सुन्दर महल, जलमहल, वर्द्धमानगृह, वल्लभी सारे दुख संसार में बहुत लम्बे जन्म मरण के मार्ग घर आदि बनवाओ, फिर दीक्षा लेना । तब नमिराज को देखो । दिस्स पाणे पियआयए... सब प्राणियों । ने कहा - संसय खलु सो कुणई, जो मग्गे कुणई