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है।
26. उपयोग आत्मा - सामान्य - विशेष जानना। | 32. “वियाणिया अप्पगं अप्पएणं" - आत्मा को 27. ज्ञान आत्मा - सम्यग ज्ञान युक्त (5 ज्ञान
आत्मा से ही जाना जा सकता है। शरीर में से) आत्मा ।
सुख के मार्ग को खोजना 'प्रेय' है, परन्तु
आत्म सुख के मार्ग को खोजना 'श्रेय' है। 28. दर्शन आत्मा - चार दर्शनो में से कोई भी दर्शन युक्त आत्मा।
33. सब संसार को जाना, परन्तु एक स्वयं
की आत्मा को नहीं जाना, तो सब व्यर्थ 29. चारित्र आत्मा - पाँचों चारित्र में से कोई भी चारित्र युक्त आत्मा।
34. सर्व आत्माओं को अपनी आत्मा समान 30. वीर्य आत्मा - आत्म शक्ति, जो सभी संसारी
समझना चाहिये, जैसी. मेरी आत्मा सुख जीवो में तो होती है परन्तु सिद्धों में भी
चाहती है, वैसे ही संसार में रही सभी भाव प्राण रुप पाती है।
आत्माएं भी सुख ही चाहती होगी ना??? 31. आत्मा के स्वाभाविक गुण 14 होते है।
35. अन्य आत्मा का तिरस्कार करना, मानो 1) सम्यक दर्शन - क्षायिक समकिती है। स्वयं की आत्मा का तिरस्कार करना ही 2) सम्यक ज्ञान - कैवल्य ज्ञानी है। 3) विरति - पाप नहीं करते है। | 36. पुद्गलों से प्रीति करने के बजाय सभी 4) अप्रमत्तता - प्रमाद नहीं करते है।
आत्माओं के साथ मैत्री (प्रीति) करनी/रखनी
चाहिए। 5) संज्ञा रहित - 4 संज्ञा रहित । 6) अकषाय - कषाय नहीं है।
37. “सव्वभूयाइं पास ओ" सभी आत्माओं
(जीवोंको) की समता/सम्यक से देखो - 7) अवेदी - विषय सेवन नहीं है।
समझो। 8) अविकारी - विकार नहीं करते है।
38. “खामेमि सब्वे जीवा” में सभी जीवों 9) अनाहारक - आहार नहीं करते है।
(आत्माओं) से खमाता हूँ। क्षमा मांगता 10) अभाषक - बोलते नहीं है।
हूँ। उदात्त एवम् उच्चत्तम अवस्था में भावों 11) अयोगी - योग रहित होते है।
का दर्शन इस सूत्र में दिखता है ना? तब 12) अलेश्या - लेश्या रहित होते है।
हम क्यों नहीं सभी जीवों से क्षमा मांगकर
अपनी आत्मा में “आल्हाद भाव" प्रहलाद 13) अशरीरी - पाँच शरीर में से एक भी
भाव पैदा करें, भार हल्का करलें। नहीं होता है। 14) अपौद्गलिक - पुदगल अंश मात्र भी
39. आत्मा पर (मन पर) 'बिना भार का भार'।
क्षमा देना व क्षमा मांगने से हल्का हो जाता आत्मा में नहीं रहता।
है। बिना भार का भार तनाव या टेन्सन उपरोक्त 14 गुण शुद्ध आत्मा-सिद्ध भगवान
होता है। में सदैव रहते है।