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श्री कृष्ण महाराज ने राजीमती जी से उपर्युक्त | "खिप्पं न सक्केइ विवेक मेउं"। (उत्तरा.सूत्र) शब्द कहे थे । वर्धमान होते रहना-ज्ञान में दर्शन में
विवेक बुद्धि की प्राप्ति बहुत अशक्य है, बहुत मुश्किल चारित्र में ।
है । सामायिक चरित्र सभी क्षेत्रों में होता है। 25) चारित्र पाँच : “वमे चत्तारि दोसे उ इच्छन्तो
सामायिक चरित्र, विशेष छेदोपस्थापनीय व परिहार हियमप्पणो" हे आत्मा । यदि आत्मा (आत्मा) का विशुद्ध, भरत, ऐरावत क्षेत्रों में ही । सूक्ष्म संपराय हित चाहता है, तो इन महादोषों को (जो “चार" है)
एवम यथाख्यात् सभी क्षेत्र (पन्द्रह कर्मभूमि/मनुष्य) छोड़ दे | पल-पल सुखी बन जावेगा | “चरित्तेण
में होता है । यथाख्यात संशुद्ध चारित्र है । निगिण्हाइ” (उत्तराध्ययन) सूत्रकार ने चारित्र पापों
तीर्थंकरो व केवल ज्ञानियों में यही चारित्र होता है। को रोकता है और कर्मों को चूर करना समझाया है
हम भी चारित्र मार्ग में आगे बढे और कषायों को । मनुष्य भव, लंबा आयुष्य, इन्द्रिय परिपूर्ण, शरीर
मंद करते रहें। कषाय घटाने से ही संयम पर्यव की निरोग आदि बोल मिलना हो गया । परन्तु संयम
बढ़ोतरी होती है। ज्ञान क्रिया की शुद्ध आराधना (चारित्र) के बिना क्षपक (गुण) श्रेणि के अभाव में
करते रहें। केवली नहीं बन सकता और केवल ज्ञानी बने बिना मोक्ष नहीं प्राप्त होता है।
“संयम धन से धनवान ही सच्चा धनी होता है,
वही मोक्ष का अधिकारी होता है" अतः जब भी मोक्ष तक पहुँचाता है चारित्र,
समय निकले या मिले, पच्चीस, बोल पर चिंतन - ज्ञान दर्शन = जानना व श्रद्धा.....
मनन कर कर्म निर्जरार्थ आगे बढ़े। परन्तु चलना चरण से ही होता है और चारित्र
(दि. 1-1-1995 इन्दौर) चरण-व्रत है । चौबीस दण्डक में मनुष्य का दण्डक
संयोजक : प्रस्तुतिकरण : ही चारित्र धारण कर सकता है। हम भाग्यशाली हैं
श्रुति जैन - मनुष्य भव प्राप्त हो गया । अब बस एक ही काम शुद्ध आराधना /पालना, ये मौका | सूत्र विनय स्वाध्याय मंडल
P. 5, II Floor, नवीन शाहदरा, दिल्ली - 110 032 बार-बार नही आने वाला है ।
किये बिना कोई काम आसान नहीं होता, सहे बिना कोई भी मानव महान नहीं होता। गांठ बांध लो उत्थान का मार्ग साधना ही है, बिना तपे कोई इंसान भगवान नहीं होता है।।
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अपने मन के दीप जलाओ दीप शिखा की जगमग ज्योति, लेकिन मानव मन में अंधियारा है
जीवन के इस महा समर में, घट गया तेल मन हारा है। बुझी हुई उस मन की लौ को, आशा की लौ से सुलगाओ। माटी के दीपक अब छोड़ो, अपने मन में दीप जलाओ।।