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241) जैसे अग्नि में तप कर सोना कुंदन बन | 252) हृदय में उदारता, मन में प्रेम हो तो सारा जाता है वैसे ही तप द्वारा भीतरी कचरे को
संसार अपना है। जला कर मनुष्य शुद्ध बन सकता है।
253) 'मैत्री भाव' धर्म की पहली सीढ़ी है। 242) जिस संघ में चारित्र को प्रधानता नहीं दी
254) अल्प साधनों का उपयोग करते हुए जीने गई हो, वह लंबे समय तक नहीं टिक सकता ।
' वाला ही सच्चा श्रावक है। चारित्र ही वह बुनियाद है जिसके आधार पर किसी संस्था का निर्माण हो सकता है।
255) लोभ ही सारे उपद्रवों की जड़ है। चारित्र को गौण करने के कारण ही लोगों
256) संसार एक रोग है, धर्म इस रोग की औषधि का अहं टकराता है व संस्थाएँ रेत के घर
और मोक्ष परम स्वास्थ्य है । की तरह बिखर जाती है।
257) जैसे मकड़ी अपने ही बनाए जाल में फँस 243) संघ वह धर्मरथ है जो शील रूपी पताका
जाती है व मृत्यु को प्राप्त होती है, वैसे ही व तपनियम रूपी घोडे से सज्जित होता
लोभ के जाल में फँसा मनुष्य नाना योनियों
में भटकता हुआ दुर्गति को प्राप्त होता है । 244) प्रदर्शन हीन भावना का द्योतक है।
258) राग और द्वेष के कीटाणु हमारे मस्तिष्क 245) धर्म के लिए भीड़ का महत्व नहीं है, धर्म
शर्म |
को खोखला बनाते हैं। तो व्यक्तिगत जीवन में गुणात्मक परिवर्तन 259) परोपकार सबसे बड़ा पुण्य और पर पीड़ा को महत्व देता है।
सबसे बड़ा पाप है। 246) धर्म मनोरंजन या बुद्धिरंजन का विषय नहीं 260) जो देना जानता है वही पाने का पात्र बनता
है, यह तो अंतःकरण को बदलने व आचरण में लाने के लिए है।
261) संसार में मनुष्य वही पाता है जो वह दूसरों 247) साधक आत्मपंथी बनेगा, तभी आत्मज्ञान
को देना चाहता है। के द्वार खुलेंगे।
262) भोग नर्क की ओर और भोग का त्याग 248) आग लगाने वालों के बाग नहीं लगते ।
मोक्ष की ओर ले जाता है । 249) जिसने अपनी रसना को नियंत्रण में रखा,
263) संतोष एक ऐसा सुख है जो सामान्य व्यक्ति को वह अपने लिए सुखों का द्वार खोल लेता है। प्राप्त नहीं होता । जिसे धर्म की समझ हो, जो 250) साधक का कार्य किसान की तरह होता है । विवेकशील हो, जिसने सत्संग करके ज्ञान अर्जित
जैसे किसान खेत की पैदावार बढ़ाने के किया हो वही संतोषी हो सकता है। लिए खरपतवार की सफाई करता रहता है,
264) संतोष से स्वभाव रूपी आनंद की प्रप्ति वैसे ही साधक को अपने ज्ञान चारित्र रूपी
होती है। उपज को बढ़ाने के लिए कर्म रूपी खरपतवार की सफाई करते रहना चाहिए।
265) युवावस्था धर्म ध्यान करने का सर्वश्रेष्ठ समय 251) धनवान वही है, जिसका हृदय विशाल है।