Book Title: Vallabhacharya Stuti Ratnawali Prakash Sahit
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्विषयेकर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुंचसमर्थस्वपरमस्याषाकृतस्यमितार्थस्वल्पलौकिकवाग्रूपस्तवोपितथैव तथापिस्तव्यस्य / / परमकारुणिकत्वात्संतोषावहः स्यादेव स्तबकोपमेहालंकारः अनेकार्थस्य युग्मस्य सादृश्ये स्तवकोपमा श्रितोस्मि चरणौ विष्णो गस्तामरसेयथेति चंद्रालोके तल्लक्षणोक्तेः तत्र यथागोरजपदयोश्च सादृश्यं तथात्रापि सूर्यवागी |शयोपस्तवयोश्च साम्यमिति लक्षणसमन्वयः नच प्रतिवस्तूपमैव्यमस्तु वस्तुवस्तुप्रत्युपमेति व्युत्पादनादत्रच Dowweweetest2888888888888mm eम तस्यानुकंपैकबलोहमेतं तन्वे स्तवं वास्तवमल्पबुद्धिः // एनोविनष्ट्यै परमस्य तुष्ट्यै वागीशितुर्दीपमिवोष्णरश्मः // 4 // तयादर्शनादिति वाच्यं इहवाक्यैक्यात् वाक्योदएव तत्संभवात् वाक्ययोरेकसामान्य इति कथनात् तथाच यत्रै कस्मिन्नेव वाक्ये उपमानोपमेयकोट्योर्यथाविवक्षं स्फुटमवयवसादृश्यं तत्र स्तबकोपमा यत्रतुसतिवाक्योदे तत् तत्र पतिवस्तूपमेति व्यवस्था ननुनेहप्रत्यंगसाम्यं उपमेयकोटावहमिति कर्तृपदस्योपादानादुपमानकोटौच पूजक | इत्यादिरूपस्य तस्याऽग्रहणात् अतएव यथाविवक्षमित्यवोचाम अन्यथा जयदेवोदाहरणेऽपि उपमेयकोट्युपा аааааааааааааааааааааааааааааааааааа For Private and Personal Use Only

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