Book Title: Vallabhacharya Stuti Ratnawali Prakash Sahit
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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व०स्तो एवंस्वरूपमुक्वा स्तुतिकरणंषतिजानते तस्येति पद्यप्यहमल्पबुद्धित्वात्यंथकरणासमर्थस्तथापितस्यभगवन्मुखस्य बीका अर्याच्छ्रीमदाचार्याणां अनुकंपाकपैवएकंबलंसामर्थ्यसाधनंबायस्यसतथा इदस्तककरणेहेतुगर्भविशेषणं तदनय हेणैव : स्तुतिसामर्थ्यस्यादितिभावः अनुग्रहःपुष्टिमार्गेनियामकइतिस्थितिरितिश्रीमदाचार्योक्तिः मुख्यतस्यहिकारुप्पमितिभ किमीमांसाद्वितीयाध्यायसूत्रात् यदायमनुगृहातिभगवानात्मभावितइत्यादिचतुर्थस्कंधादिवचनेभ्यश्चअल्पबुद्धीना मपिध्रुवादीनांकषयैवहिस्तुतिसामोद्भवःस्मयते पस्पर्शबालंकृपयाकपोले योंतःप्रविश्यममवाचमिमांप्रसुप्तामित्यादि श्रीभागवतादिवचनेषु तादृशोऽहंवागीशितुस्तस्यवास्तवंअतिशयोक्त्यनाविद्धं एतंबुद्ध्यासन्निधापितस्तवंतन्वे आत्मने 8 | पदात्फलस्यमुख्यतयाआत्मगामित्वंसूचितं लौकिकवर्णनेमुखेचंद्रत्वाद्यारोपोवस्तुतस्तुचंद्रनिष्ठसर्वप्रकाशकत्वादिस वंगुणाभावादधिकोक्तिरूपःसन्नवास्तवोभवति ईश्वराणांतु निरस्तसाम्यातिशयत्वात्तत्रतुल्योक्तिरेवनसंभवति कुत / स्तरामतिशयोक्तिरतस्तत्स्तुतौवास्तवत्वंसुस्थं अत्रोपमानमाहुः दीपमित्यादि सर्वेषामेवदेवादीनांषोडशाधुपचारैः पूजने Bधूपानंतरंपकाशार्थदीपोभवतीति सूर्यस्यपूजनेपितथाकुर्वति बस्तुतोविचारेतुसमयब्रह्मांडमंडलारखंडप्रकाशिचंडकिरण | स्यस्वल्पतरप्रकाशत्वाद्दीपोनुपयुक्तः तथापिपूजांगत्वंपुष्णन्पूज्यस्यसंतोषमावहति एवमत्रापिसमयवाचामीशितुस्त मितत्समक्षाभ्यधिकश्चदृश्यतइति वेताश्क्तरश्रुतेः निरस्तसाम्पातिशयेन राधमेति भागवताहितीयस्कंधोक्तश्च / 3888888888888888888888888888samaee caomsadhaDarsansasedaaai For Private and Personal Use Only

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