Book Title: Vallabhacharya Stuti Ratnawali Prakash Sahit
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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DROGORDREDEBBDBBBBBBBBBBDOBBEL एवंमंगलमाचर्य्यउपोद्घातमाहुः स्वास्यमिति तेनमगवतास्वस्पस्वंवा आस्यंमुखं विआचार्यरूपेणआविष्कृतस्वधा निसदाप्रत्यक्षत्वाद्भुवीतिपदं तत्रप्रयोजनं स्वीयानांदेवजीवानांदोषयोगैरपराधसंबंधैः स्वस्माद्वियुक्तानांसंसारमोहनि वृत्तिपूर्वकं पुनःस्वसंयोगसमृद्ध्यर्थमिति स्वसंयोगेसमृद्धित्वारोपणाल्लौकिकानाकांक्षत्वंस्वसंयोगाधिकारिणांसूचितं ई| दशसमृद्धिसंपादनेस्वास्याविष्करणेचहेतुस्तुकृपेव कृपायांचस्वीयत्वकारणं तथापिजक्तान्मजतेमहेश्वरइति श्रीक्षा गवतवाक्यात् अतएवगीतायामपिनवमाध्यायेगवता समोहंसर्वभूतेषुनमेद्वेष्योऽस्तिनप्रियइति स्वस्यसर्वत्रसमत्व स्वास्यमाविष्कृतंतेनस्वीयानांकृपया वि॥दोषयोगैर्वियुक्तानांस्वसंयोगसमृद्धये // 3 // | मुक्वापि येशजंतितुमांजक्यामयितेतेषुचाप्यहमिति तुशब्दोक्तिपूर्वकंमक्तेषुविशेषउक्तः अत्रास्याविष्करणस्वसंयुयोजयि पारूंपादीनांपूर्वपूर्वउत्तरोत्तरस्यकारणत्वात् कारणमालालंकारः लक्षणंतुकाव्यप्रकाशे यथोत्तरंचेत्पूर्वस्यपूर्वस्यार्थस्यहे। तुता तदाकारणमालास्यादिति सचेहव्यंग्यः अयवा असावुदेतिशीतांशुर्मानच्छेदायसुचवामितिवत् द्वितीयोहेतुभेद एवास्तु एवंचमुखमग्निरिद्धइत्यादिद्वितीयस्कंधादिवाक्येषुमुखस्याग्निरूपत्वाद्भगवन्मुखाग्निरूपाः श्रीमदाचार्याइतिफलि एतद्विषयेश्रौतपौराणिकादिप्रमाणानितु श्रुतिरहस्यचरित्रचिंतामण्यादौषाक्तनैरेवोपन्यस्तानीत्यलमिहोल्लेखेन॥३॥ चिंता प्रकृतसिदार्या मुपोद्घातं विधाः esaeddere eeeeeerstedasseerder eeeeee For Private and Personal Use Only

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