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प्रस्तावना
छठी 'भविष्यदत्तपंचमीकथा' एक संस्कृत रचना है। उसकी प्रशस्तिमें कवि-परिचयसम्बन्धी कोई भी सामग्री प्राप्त नहीं होती। दिल्ली के एक शास्त्र-भण्डारमें इसकी एक अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण प्रतिलिपि प्राप्त हुई है, जिसका प्रतिलिपिकाल वि. सं. १४८६ है। इससे यह तो स्पष्ट है कि ये विबुध श्रीधर वि. सं. १४८६ के पूर्व हो चुके हैं, किन्तु मूल प्रतिको देखे बिना इस रचनाके रचनाकारके विषयमें कुछ भी निर्णय लेना सम्भव नहीं। फिर भी जबतक इस कविके विषयमें अन्य जानकारी प्राप्त नहीं हो जाती तबतकके लिए अस्थायी रूपसे ही सही, यह अनुमान किया जा सकता है कि चूंकि इस रचनाके रचनाकार संस्कृत-कवि थे अतः वे 'वड्डमाणचरिउ' के अपभ्रंश-कवि विबुध श्रीधरसे भिन्न हैं।
पांचवें विबध श्रीधरके भविसयत्तपंचमीचरिउ' का रचनाकाल ग्रन्थकारने अपनी प्रशस्तिमें स्वयं ही वि. सं. १५३० अंकित किया है, इससे यह स्पष्ट है कि ये विबुध श्रीधर 'वड्डमाणचरिउ' के १२वीं सदीके रचयिता विबुध श्रीधरसे सर्वथा भिन्न हैं।
चौथे विबुध श्रीधरकी रचना 'भविसयत्तकहा' की अन्त्य-प्रशस्तिमें कविने उसका रचनाकाल वि. सं. १२३० स्पष्ट रूपसे अंकित किया है तथा लिखा है कि-"चन्दवार-नगरमें स्थित माथुरकुलीन नारायणके पुत्र तथा वासुदेवके बड़े भाई सुपट्टने कवि श्रीधर से कहा कि आप मेरी माता रुप्पिणीके निमित्त 'पंचमी-व्रत-फल सम्बन्धी 'भविसयत्तकहा' का निरूपण कीजिए।"
तृतीय विबुध श्रीधरने अपने 'सुकुमालचरिउ' में उसका रचना-काल विक्रम संवत् १२०८ अंकित किया है तथा ग्रन्थ-प्रशस्तिके अनुसार उसने उसकी रचना बलडइ नामक नगरमें राजा गोविन्दचन्द्रके समयमें की थी । यह रचना पीथे पुत्र कुमरको प्रेरणासे लिखी गयी थी । उक्त दोनों ग्रन्थों अर्थात् 'भविसयत्तकहा' और 'सुकुमालचरिउ' में कविने यद्यपि अपना परिचय प्रस्तुत नहीं किया, किन्तु ग्रन्थोंकी भाषा-शैली, रचनाकाल एवं कवियोंके नाम-साम्यके आधारपर उन दोनोंके कर्ता अभिन्न प्रतीत होते हैं।
द्वितीय विबुध श्रीधरपर इसी प्रस्तावनामें पृथक् रूपसे विचार किया गया है, और उसमें यह बताया गया है कि ये विबुध श्रीधर उपर्युक्त दोनों विबुध श्रीधरोंसे अभिन्न हैं ।
प्रथम रचना-'पासणाहचरिउ' के कर्ता विबुध श्रीधरने इसकी प्रशस्तिमें अपना परिचय देते हुए अपने माता-पिताका नाम क्रमशः वील्हा एवं गोल्ह लिखा है। उसने अपनी पूर्ववर्ती रचनाओंमें 'चन्द्रप्रभचरित' का भी उल्लेख किया है। ये तीनों सूचनाएँ उक्त 'वड्डमाणचरिउ' में भी उपलब्ध हैं।' कविने 'पासणाहचरिउ' का रचनाकाल वि. सं. ११८९ (अर्थात् 'वड्डमाणचरिउ' से एक वर्ष पूर्व) स्वयं बताया है।' प्रतीत होता है कि कविने 'संतिजिणेसरचरिउ' की रचना 'पासणाहचरिउ' की रचनाके बाद तथा 'वडमाण
१. सं. १४८६ वर्षे आषाढ़ वदि ७ गुरु दिने गोपाचल दुर्गे राजा डूंगरसीह राज्य प्रवर्त्तमाने श्री काष्ठासंघे माथुरान्वये पुष्करगणे
आचार्यश्रीगुणकीर्तिदेवास्तच्छिष्य श्री यशःकीर्तिदेवास्तेन निजज्ञानावरणीकर्मक्षयार्थ इदं भविष्यदत्तपंचमीकथा लिखापितं । दिल्ली प्रति। २. पंचदह जि सय फुड्डु तीसाहिय......(१२४७ ) आमेर प्रति । ३. बारहसय वरिसहिं परिगएहिं दुगुणिय पणरह बच्छर जुएहिं ।
फागुण मासम्मि वलक्ख पक्खे दहिमिहि-दिणि-तिमिरुक्कर विवरखे। रविवार...
[दे.प्रस्तुत ग्रन्थका परिशिष्ट १ (ग)] ४. भविसयत्तकहा ( अप्रकाशित)-१२. [दे. इसी ग्रन्थका ८. पासणाहचरिउ (अप्रकाशित) १।२।३-४ [ दे. इसी ग्रन्थकी परिशिष्ट सं. १(ग)]
.. परिशिष्ट सं.१ (क)] ५. सुकुमालचरिउ-(अप्रकाशित) ६१३३१४-१५ [ दे. इसी है. वही, ०२।१। ग्रन्थकी परिशिष्ट सं.१ (ख)]
१०. वड्ढमाण.-१।३।२१०४१५:१२६। ६. दे.-वही, १।१३-४ ।
११. पासणाह.-१२।१८।१०-१३ । ७. दे.-वही,१११।११। .. . . .
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