Book Title: Uvavaia Suttam
Author(s): Ganesh Lalwani, Rameshmuni
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 16
________________ भूमिका 'उववाइय सुत्तं' की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें एक ऐतिहासिक राजा का, उसकी राजधानी का तथा भगवान् महावीर के प्रति रही उसकी अगाध भक्ति का सुविस्तृत वर्णन है। वह राजा 'उववाइय सुत्तं' आदि जैन आगमों में 'कूणिक' के नाम से विख्यात् है तथा भारतीय इतिहास के पृष्ठों पर अजातशत्रु के नाम से सर्वविदित है: इतिहासकार मुख्यतः उसे भगवान बुद्ध के अनुयायी के रूप में ही जानते व मानते हैं। जबकि स्थिति यह है कि जितना विशद वर्णन उसका जैन आगमों में है व जितनी भक्ति उसकी भगवान महावीर के प्रति रही है, उतनी अन्य किसी महापुरुष में रही हो, यह अन्य किसी भी साहित्य से प्रमाणित नहीं होता। यहां तक कि भगवान महावीर की प्रतिदिन की विहार-चर्या जानने के लिए उसने एक अलग से राजकीय विभाग ही बना रखा था। उस विभाग का प्रमुख 'प्रवृत्ति वादुक' कहलाता था। पर, जैन आगमों में उस राजा का नाम कूणिक तथा इतिहास में उसका नाम अजातशत्रु, ऐसा क्यों ? उत्तर स्पष्ट है कि बौद्धों के त्रिपिटक साहित्य में उसे मुख्यतः अजातशत्रु ही कहा गया है। प्रश्न उठता है कि विश्व के इतिहासकारों ने उसी नाम को क्यों अपनाया ? स्थिति यह है कि बौद्धों ने अपने आधारभूत साहित्य को अंग्रेजी तथा विश्व की अन्य विभिन्न भाषाओं में सुलभ करने की पहल की। यही कारण था कि इतिहासकारों ने कूणिक को अजातशत्रु के नाम से ही जाना तथा मुख्यतः उसे एक बौद्ध राजा के रूप में ही प्रस्तुत किया, जैसा कि वस्तुस्थिति से बहुत परे सिद्ध होता है। जन समाज के लिए यह एक सबक लेने का विषय है कि हमारी निष्क्रियता व अदूरदर्शिता के कारण जैन संस्कृति व जैन इतिहास को कितना सीमित रह जाना पड़ा है। ___ यही हाल भगवान महावीर के परम भक्त राजा श्रेणिक का है। बौद्ध त्रिपिटकों में उसे मुख्यतः बिंबिसार कहा गया है तथा भगवान् बुद्ध का परम अनुयायी बताया गया है। तदनुसार विश्व के व भारत के इतिहासकार

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