Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
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वालियतवस्सिणा
विषयाभ्यासाह
MCN
5959
श्रीउपदे- दरजसं मंतनिमित्तं नियाओ ठाणाओ। अवहरिय मंडलंतो निवेसियं घायणस्स कए ॥५१॥ एगेणं कावालियतवस्सिणा शपदे
भीमडमरुयरवेण । पडिच्छंदमणुसरंतो चिंतेउमिमं समाढत्तो ॥५२॥ किं एसा मम दइया अहवा तीए इह कहंभावो।
चित्ता दिवस्स गई तत्तो किंवा न संभवइ? ॥ ५३ ॥ अहवा जा कावि इमा होउ अहं ताण कारगो होमि । एयाओ ॥४० ॥
रणे शुकरक्खसचेट्ठियाओ अइदुट्ठचित्ताओ॥ ५४॥ तो हक्कारववहिरियरण्णुदेसो भणेइ तं कुमरो।रे रे! अणजकजं कह
शुकीउत्तएयं ववसिओ सि त्ति ॥ ५५॥ उक्खित्तमंडलग्गं तं पेच्छिय निच्छियं च घायकए । संजायमचुतासो सहसा असणी- रभवस्वभूओ ॥५६॥ उवलद्धजीविया सा भणिया तो तेण कहसु तं एत्थं । कह पत्ता सा भासइ रयणीए सुहपसुत्ता हैं ॥५७॥ रूपयुतं केणावणजचरिएण आणिया तक्खणं च पडिबुद्धा । जा पेच्छामि समंता दिट्ठो कावालिओ एस ॥ ५८॥ सुहय ! तुहं चरित्रम्
पडिच्छंदस्स दसणाओ समप्पिओ अप्पा । पुर्विपि संपयं पुण विक्कमकिणिया अहं जाया ॥ ५९॥ कहिओ नियवुत्तंतो त कुमरेणवि तुज्झ परिणयणहेडं । चलिओ सुंदरि! तुरएण आणिओ देवजोगेण ॥ ६०॥ एयम्मि अवसरे कुमरसेन्नमह
सबमेव संपत्तं । घेत्तुं पुरंदरजसं तो पत्तो तीए पिउगेहे ॥ ६१॥ जाओ महामहेणं वीवाहो ताण बहुलनेहाण । कालेण पिउपुरीए समागओ पणमिओ जणओ॥ २॥ तो धणकोडी वहुयाओ जं च अन्नंपि निवईगिहजोगां । दाएणदुगु
णेणं बहुयाए दावियं रण्णा ॥ ६३ ॥ जह दोगुंदुगदेवस्स दिवभोगेहिं वोलए कालो । तह तस्सवि य मणोरहसमणंतरP सिद्धकजस्स ॥ ६४ ॥ कइयाइ सीमपालो नरपालो कुणइ आउलं देसं । लद्धपउत्ती निधिकुंडलस्स जणओ पुरा नीइ5॥४०॥
॥६५॥ तस्सासणथमइभूरिरोसपसरो समग्गसेणाए । पलयानिललोलियजलहिसलिलकल्लोलदुद्धरिसो ॥६६॥ पत्तो
GOROSAUGUST
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