Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

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Page 950
________________ शपदे श्रीउपदे- ठाणाई ॥ ३३२ ॥ बंधुं पियरं तह मायरं च बहुनेहनिब्भरंपि नरो । लुद्धो मुद्धो विहलेइ दूरमवगणियवयणिज्जो॥३३॥ विषया ६ जह चुल्लीओ अन्नस्स कारणा कोवि'कडूइ करेहिं । जलणं स डज्झइ च्चिय तह य इमो परियणनिमित्तं ॥ ३३४ ॥ कुण- भ्यासे शु माणो पावाई हिंसाईयाई विविहरूवाई। पावफलमप्पणच्चिय परिभुंजइ निच्छया ताव ॥ ३३५ ॥ घी धी भोगा धणमवि है कोदाहर॥४०९॥ 5 धीधी इंदियसमुन्भवं सोक्खं । धीधी पियसंजोगो धीधी एसो परियणोवि ॥ ३३६ ॥ जं एएसु पसत्ता सत्ता पत्ता पम- णम्दत्तचरियाई। पावंति दुहाई दुत्तराई नरगाइरूवाई ॥ ३३७ ॥ ता जुत्तो मे काउं कुसलारंभो भवा विरत्तस्स । जं दुलहो र संजोगो मणुयत्तणसुकुलमाईणं ॥ ३३८ ॥ एत्थंतरम्मि उज्जाणपालगेणं नरेण विन्नत्तो । जह देव! तुहुज्जाणे समोसढो 8 सिरिधरो सूरी ॥ ३३९ ॥ पुलयंकुरियसरीरो हरिसाओ सुणिय वयणमेयस्स । चिंतइ अहो! अपुवो सुहोदओ मज्झ । है संजाओ ॥ ३४० ॥ कत्थेसा मम चिंता कत्थेसो गुणनिही मुणी पत्तो । मोत्तु विलंब जमुचियमेयस्स खणस्स तं काहं ६ ॥ ३४१॥ तो सयलपरियणजुओ तक्खणमब्भुजओ तयंतम्मि । गंतुं कमेण पत्तो ससंभमं वंदिउं विहिणा ॥ ३४२॥ 5. जाओ कमेण चक्की नियचक्कक्कमियसयलमहिवलओ । नवनिहिवई चउद्दसरयणपहू पहूयगुणो ॥ ३४३ ॥ चकं फुरंतकदरपहकरेण वित्थरियरोमविवरेण । नजइ निजियतेओ रविव सेवथमिहं पत्तो॥ ३४४ ॥ तरुणतमालदलाभो तस्सासी वेरिसीसनिन्नासी । जेण पयासियजिब्भो जमोव सेवापरो भाइ ॥ ३४५॥ धम्मजलपंसुवारणमायववारणमहोवरि तस्स । ६ नज्जइ सेवाए कए सिरीए कयपंकयं ठवियं ॥ ३४६ ॥ नइजलतरणाईसु लद्धवओगं सयावि दुग्गेसु । चम्मरयणं समु-5॥४०९॥ भूयमस्स संपुन्नपुन्नस्स ॥ ३४७ ॥ तह उइंडो दंडो गिरिखंडणपमुहकज्जदुल्ललिओ । मुंचंतो करनियरं नहमंडलमंडणं है

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