Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

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Page 954
________________ श्रीउपदेशपदे ॥४१०॥ नेसप्पाओ सयणासणाई सुकुमालफंसकलियाई । तस्स तणूनिबुइसाहगाई बहु भत्तिजुत्ताई ॥३६५॥ सबरयणामयाओ विषयानिहिणो निहणं कहिंचि अलहतो । सबोवि वंछियत्थो सिज्झइ तस्सुग्गपुन्नस्स ॥ ३६६ ॥ बीयं जीयं पिव तस्स चारुणो है भ्यासे शुमंतिनंदणो जाओ। विस्सासठाणमेकं निकित्तिमनिविडपेमपयं ॥ ३६७ ॥ बत्तीससहस्सा सुंदरीण सुंदेररयणखाणीण । कोदाहररिउकल्लाणभिहाणाण तस्स जायाण संजाया ॥ ३६८॥ जणवयकल्लाणिगणामिगाण तह एत्तियाण अन्नासिं । जाओ पई ५ णम्महेलाण हीलियामरबहुगणाण ॥ ३६९॥ सोऽणेगखेडकबडमडंबगामागराइसकिन्न । भुंजित्ता तो सुबह पुराणमणेगलक्खाई ॥ ३७० ॥ अह अन्नया सिर्वकरनामा अरिहा समोसढो तत्थ । तस्स पउत्तिनिउत्तेहिं झत्ति पुरिसेहिं विन्नत्तो ॥ ३७१ ॥ देव! तुहुजाणे अज सयलजगजीववच्छलो भयवं । संपत्तो तिजयसिरिं सज्जो एत्थं समच्छेतो ॥ ३७२ ॥ अद्धत्तेरसलक्खे तक्खणमेयाण सो सुवन्नस्स । दावेइ वित्तिदाणं एत्तियकोडीओ पुण तोसा ॥ ३७३ ॥ रइयम्मि समोसरणे समागए देवदाणवसमूहे । संतेउरो सपुत्तो सपरियणो निग्गओ स पुरा ॥ ३७४ ॥ अभिवंदिओ य सामी निसामिओ मुक्खसाहगो धम्मो । तत्कालमेव उल्लसियबहलभावो भणइ एवं ॥ ३७५ ॥ भयवं! सचिवसुओ मे किमेस रजस्सिमस्स मज्झम्मि । दूरं मणप्पिओ भाइ भयवया भासियं तत्तो ॥३७६॥ जह एत्तो जम्मे अट्ठमम्मि तुह कीरभावभाइस्स । एसो ॐ आसि कलत्तं कहिए एमाइवुत्तंते ॥३७७॥ जायं जाईसरणं दढमारूढो मणे स वेरग्गं । विन्नवइ भुवणभाणु जोडियकरसंद पुडो एवं ॥३७८॥ भयवं! तुह पयमूले मूले सयलाण पत्थियत्थाण । इण्हिं गिण्हामि वयं परं सुयं ठाविउं रजे ॥३७९॥ ॥ ४१०॥ न तो भगवयावि भणियं णो पडिबंधो खमो इहं काउं । जं उत्तमाण मोक्खं मोत्तूण न पत्थणिजति ॥ ३८॥ निययम्मि

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