Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
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जणदगसिंचण संका मोहो भगवंत पुच्छ कहणाय।आगमणे एसोसा विम्हय गंभीरधम्मकहा॥१०२१॥
एगपि उदगविंदुं जह पक्खित्तं महासमुद्दम्मि । जायति अक्खयमेवं पूजावि हु वीयरागेसु॥१०२२॥ Pउत्तमगुणवहुमाणो पयमुत्तमसत्तमज्झयारम्मि । उत्तमधम्मपसिद्धी पूजाए वीयरागाण ॥ १०२३ ॥
एएणं बीजेणं दुक्खाइं अपाविऊण भवगहणे । अञ्चंतुदारभोगो सिद्धो सो अट्ठमे जम्मे ॥१०२४॥ 13 कणगउरे कणगधओ राया होऊण सरयछणगमणे। दट्ठण वइससमिणं जाओ पत्तेयबुद्धोत्ति ॥१०२५॥
मंडुक्कसप्पकुररजगराण कूरं परंपरग्गसणं । परिभाविऊण एवं लोगं हीणाइभेयंति ॥ १०२६ ॥ मंडुको इव लोगो हीणो इयरेण पन्नगेणंव। एत्थ गसिज्झति सोवि हुकुररसमाणेण अन्नेण ॥१०२७॥18 सोवियन एत्थ सवसो जम्हा अजगरकयंतवसगोत्तिा एवंविहेवि लोए विसयपसंगो महामोहो॥१०२८॥ इय चिंतिऊण य भयं सम्मं संजायचरणपरिणामो।रजं चइऊण तहा जाओसमणो समियपावो १०२९ । सिद्धो य केवलसिरिं परमं संपाविऊण उज्झाए । सकावयारणामे परमसिवे चेइउज्जाणे ॥ १०३०॥
काफन्दी नाम मध्यदेशावतंसभूता सद्भूतभावसंभूतिहेतुः पुरुहूतपुरसमृद्धिस्पर्धिनी पुरी समभूत् । तस्यां च कदा

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