Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

View full book text
Previous | Next

Page 991
________________ तओ कुणी वराडियामेत्तंपि तओ रयणाओ अलहंतीए महाणुतावतवियचित्तगत्ताए विश्वित्तजुत्तिपडिवत्तिसारं भणिया तहावि न मुयड़ तयग्गहं, भणइ य “अवि दारूहिं हुयासो तिप्पड़ रयणायरो सवंतीहिं । नय तं तिप्पसि पावे ! नहावि देतेण दइएण ॥ १ ॥ अवियालिंगड़ अंगं भयवं धूमद्धओ धुवं मज्झ । ण उण सुमित्ता अन्नो पुरिसो सरिसोवि मयणेण ॥ २ ॥ एवं च कयनिच्छयं तं बहुप्पयारसवहेहिं काराविऊण पाणवित्तिं जाया सुमित्तमग्गणिकमणा बुड्ढा । अक्षया दिडो कयसिंगारो घरासन्नरच्छाए बोलिंतो । तओ तुरियं गंतूणं, सविणयमाणीओ निहेलणं, काऊण महंतं पडियत्तिं, भणिओ य पुत्त ! जुत्तं किं नाम तहा पवसणं । अविय - " जलपाणत्थनिविट्ठो उडतो कहइ पंछिओ वत्तं । तं पुण दंसियनेहो कहमकहंतो पउत्थो सि ? ॥ १ ॥ किर कत्थ कत्थ न मए पुत्त ! गविट्ठो सि एत्तियं कालं । णय दंसणदाणेणं कओ पसाओ तए अम्ह ॥ २ ॥ एसा य मज्झ दुहिया संपत्ता पेच्छ पाणसंदेहं । नय निन्नेहा जाया मुक्का अव| राहविरहेवि || ३ ||" तओ सुमित्तेण अहो धुत्तीए धिट्ठया जमेद्दहमेत्तावराहंपि निण्हवेइ, तहावि न अन्नो चिंतामणि लहणावा ओत्ति भावतेण अदंसियवियारं भणियं - मा एवमन्नहा संभावेह, अहं खु उत्तालपओयणेण देसंतरं गओ, असं चैवागओ, वक्खेवाओ य नेह पत्तो म्हि । एयमायण्णिय पम्हुट्ठविलीउत्ति तुट्ठा कुट्टणी, तहावि चप्फलिया भविस्मामित्ति न समग्पेइ चिंतामणि । तओ कयाइ वीसत्था भणिया णेण रइसेणा - पिए ! दंसेमि एकंपि कोउयं जइ न सिहिसि । तओ दंसेहित्ति भणिए पुवं भणिएणंजणेणं तं करहिं काऊण गओ समंदिरं । इयरीवि भोयणावसरे वाह रिया वाइगाए, अदिनपडिवयणत्ति संभमाओ सच्चविया य । दट्ठूण तहारूवं, किमने एयाए खइया होही णूणं, रक्खसी

Loading...

Page Navigation
1 ... 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008