Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
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८.७०
जाओ ।। १४८ ।। दिवसकरकरागोयरतिमिर भरुद्धारधीरसामत्था । करभावंव गया सइ चंदकला कागिणी तस्स ॥ ३४९ ॥ जाओ मिरी सिरोमणिसारिच्छो अह मणी फुरियकिरणो । नवमेहनीलतमभारभंजणे लद्धमाहप्पो ॥ ३५० ॥ तग्गरिममंजियो इव पणओ नीलो गिरी गओ तस्स । चलमाणचारुचामरविराइओ संदमाणमओ ॥ ३५१ ॥ अक्खलियगई बलवं मणजवणो अह तुरंगमो लुंगो । वाओ इव सेवत्यं संपुन्नो तस्स पुन्नेहिं ॥ ३५२ ॥ वेरिभयाणमभूमी भूमी सूरतस्म पउरस्स । सेणाहियो पराभूयभूरिसूरो समुन्भूओ ॥ ३५३ ॥ तह दाणवमाणवविहियवसणसंतिक्खमेकसत्तिजुओ । जाओ पुरोहिओ हियनिमित्तसवणत्थमेयस्स ॥ ३५४ ॥ तक्कालाभिलसियतियसनाहगेहाणुकारिभवणकरो । अह वट्टई विमाहप्पो विस्सकंमसमो ३५५ || चिंतारूढापच्चयववहारो सामिगेहकज्जपरो । लोगाचारसुकुसलो अहेसि गाहावई तस्म ॥ ३५६ ॥ सवंगलक्खलक्खणलक्खं पइचित्तरंजणे दक्खं । रम्मं रामारयणं रयणपहारंजणेदण्णं (१) ॥ ३५७ ॥ पंदुयनिही समप्पेद तस्स जहकालमखलियकमाओ । सालिजवाईयाओ धन्नाओ सबजाईओ ॥ ३५८ ॥ कुंडलतिलयंगय| अंगुलिका मणिमउडतारहाराई । दिवालंकार विही संपज्जइ पिंगलनिहीओ ॥ ३५९ ॥ सोरभभरभरियदिसं सबोइयमुज्जलं फुरंतदलं । मंदारपमुहमले उम्मेलइ कालगनिहीओ ॥ ३६० ॥ वियरइ तस्सासंखं संखनिही सवणसुहयरारावं । विविहं आउजाविहिं मणोज्जमणवरयवजंतं ॥ ३६१ ॥ णाणाविभत्तिकलियाई तस्स चीणंसुगाई वत्थाई | आमयहराई पउमो निही निसिद्धं उवणमेइ ॥ ३६२ ॥ ततंत्रतारमणिकंचणाई घडियं गिहे जमुवगरणं । तं तस्स महाकालो निही निहित्तं मया कुद् || ३६३ ॥ तारतरवारितोमरसरचकमुसुंढिभिंडिमालाई । पहरणगणो रणसहो माणवगाओ समुट्ठेइ ॥ ३६४ ॥

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