Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
View full book text
________________
RRCRACACANCSCRCRACRACKS
31 पुच्छइ ते सुमिणाणं एएसि किमिह मह फलो होही । ते मीमंसियसत्था सुविसत्था संगया वेति ॥ ३१७ ॥ देवी देव! नवण्हं मासाणं किंचि साइरेगाण । पुत्तं जणिही हीरंव विक्कमकंतभूचकं ॥ ३१८ ॥ परिणामे सो चक्की नवनिहिविणिओगफलियसयलिच्छो । सोलसजक्खसहस्सेहिं रक्खिओ मच्चलोगपहू ॥ ३१९ ॥ अहवावि भत्तिपणमंततियसबहुसीसकुमुमदामेहिं । ओमालिज्जतकमो नियमा तित्थाहिवो होही ॥ ३२० ॥ संमाणिया सुवहुयं वित्तिपयाणेण तो गया ठाणं । दाणिययं निमित्तिया ओ जाओ य सुओ स समयम्मि ॥३२॥ दिन्नं पियंकरोत्ति य णाम सबस्स जंपियं जायं । जायम्मि
तम्मि वमहामंडलमंडणसमाणम्मि ॥ ३२२॥ सा य पुण चंदकंताजीवो मंतिस्स सुमइनामस्स । तत्थेव पुरे जाओ पुत्तताए पवित्तगुणो ॥ ३२३ ॥ मइसागर इय नामं तस्स कयं जोयणं कमा पत्तो। तो दोवि मंतिरायण्णनंदणा पोढपेमपरा 8 ॥ ३२४ ॥ काले किल केवइए वोलीणे भूवई य सिरिसेणो । पलियकलियं नियं सिरमादरिसतले निभालेइ ॥ ३२५ ॥ तक्सणमेव स चिंतेति एवमेसो निओवि जइ देहो । पडिवजई विगारं को नामन्नो धुवो होही? ॥ ३२६ ॥ ता सबमिणं जलवुब्बुयय दिटुं तहा विणटुं च । मइमंतस्स पसत्ती न जुजए काउमेयम्मि ॥ ३२७॥ तहा हि । जग्गंति संपयासुं विव-12 ईए दूरदुक्खपयवीओ। निच्चं मचू तह जीवियम्मि आसाण मूलम्मि ॥३२८॥ पियपुत्तकलत्ताईण संगमो दुस्सहो विओ-है। गोवि । परिजजरभावकरी जोवणलच्छीए एत्थ जरा ॥ ३२९ ॥ जह गोवालो गोवग्गपालणे इह लहेइ नियवित्तिं । तह मुटुंसं राया जणलाभाओ परिलहतो ॥ ३३० ॥ पुहवीए पालणाओ निच्चंतकज्जचिंतणादुहिओ । किंकरसमोवि मन्नइ8 | अप्पाणं णायगं मूढो ॥ ३३१ ॥ नाहत्तणमयमत्तो जीवो तं किंचि कम्ममायरइ । जेण कलुसीकयप्पा पावइ पावाई |

Page Navigation
1 ... 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008