Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

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Page 947
________________ * जणगाओ को नाम होज पेमालुओ जणे अन्नो । जब सोवि नेहरहिओ मन्ने ता सुन्नमेव जयं ॥ २८६ ॥ इय चित्त-1 कामितणाहि विहडियमोहा जया निषेणेसा। दिदा पेमपिसाओ नट्ठो तस्सावि विसएसु ॥२८७॥ तत्तो सयलंपि जयं निभालियं तेहि वाललोयाण । धूलीहरसरिसं पवणचलियधयवडसमाणं वा ॥ २८८ ॥ एवं संसारविरसमाणसाणं वयंति जा दियमा । विउलजसो नामेणं संपत्तो ताव तित्थयरो॥२८९ ॥ दिणयरविवागारेण धम्मचक्केण भूरि भासंतो । दरगलअस्थियतिमिरेण अग्गो चंकमंतेण ॥ २९०॥ तह फालिहेण सिंहासणेण अइरुइरपायवीरेण । उवरि नहंगणचंदाणकारिणो छत्ततियगेण ॥ २९१ ॥ विजुपुंजुज्जलहेममइयनवपउमगन्भकयचलणो । बहु तियसकोडिपणओ ढलंतसियचामगप्पीलो ॥२९२॥ पलययणगहिरदुंदुहिभंकाराराववहिरियदियंतो । सग्गं पिव पञ्चक्खं अवयारिंतो महीवलए ॥२९॥ कहिमो य पउत्तिनियेयगेहिं पुरिसेहिं देव ! जह अज । तित्थाहिवो इह पुरे समोसढो विउलजसनामा ॥ २९४ ॥ सधि-| डिमारमेमो विणिग्गो तस्स वंदणणिमित्तं । पंचविहाभिगमजुओ पत्तो तप्पायमूलम्मि ॥२९५ ॥ कहिओ य तेण धम्मो | जह जम्मो माणुसो इमो दुलहो । नो बोलीणमिहाउं विणियत्तइ तियसपहुणोवि ॥ २९६ ॥ जीवियसारा नीरोगयाइ अइचंचला, सिणेहपरो । नियकजवद्धबुद्धी सयलोवि इमो सयणलोओ ॥ २९७ ॥ विरियपि धम्मविसयं नो निययं ता लहिनुमियमित्तो । जुज्जइ सम्मं धम्मुज्जमेण सहलतमाणे ॥ २९८ ॥ एवं सुणित्ताण जिणस्स वाणिं, समत्तदोसाण कयप्पहाणि । मयस्स संगस्स विवजणेण समुडिओ सघवयाइं घेत्तुं ॥ २९९ ॥ भणाइ एवं जह नाह! लोओ एसो पलिचालय तुलस्यो । नेच्छामि एत्थं परिसंठिउं जं समंतओ दुक्खपरंपरेह ॥ ३०० ॥ ता जाव पुत्तं निययम्मि रज्जे ठवेमि

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