Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
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विषयाभ्यासे शुकोदाहरणम्
श्रीउपदे- जह सा एसा जं पुण जाइविहीणतणं तया तेण । कहियं तं मम मन्ने पडिबंधपरिच्छणणिमित्तं ॥ २३९॥ अणुकूलम्मि शपदे य दिवे तं नत्थि सुहं वराय जं एत्थ । ण घडइ मणोरहाणवि अगोयरा जं इमा दिवा ॥ २४०॥ ता कइया सो होही
दिवसो पाणिग्गहेण एईए। होहामि कयत्थो अमयकुंडबुडोष जम्मि अहं ॥ २४१॥ एमाइचित्तचिंतासंताणसमुल्लसंत॥४०६॥
संतोसो। जा चिट्ठइ ता राया सयमेव समागओ भणइ ॥ २४२॥ कुमर! मम चंदकंता धूया एसा निसामिऊण गुणे।
उम्माहिया तुह कए वोलावइ वासरे कहवि ॥ २४३ ॥ ता किज्जउ पसाओ वीवाहिजउ इमा कए एवं । पडिपुण्णचंदद मंडलजोगो संपज्जइ निसाए ॥ २४४ ॥ एवं बहुप्पयारं पडिवजाविय दिणे पसथम्मि । विहिओ वीवाहो खयरसुंदरी| विहियमंगल्लो ॥ २४५॥ सयलिंदियाणुकूला सुहमूला जणियसत्तुसिरसूला। जाया विउला भोगा तेसिं अइसइयसुरलोगा ॥२४६॥ एत्तो य जणा णिसुयं जणणी जणओ य मह ममं विरहे । तदिणमेव विलावे अकरिंसु इमेरिससरूवे ॥२४७॥ किं तं सुरेण असुरेण खेयरेणं व वच्छ! अवहरिओ । अनिमित्तवेरिणा दारुणाई दुक्खाई देतेण ॥ २४८॥ मोत्तूणमसरणाई अम्हे उच्छंगसंगदुल्ललिओ । कत्थ गओसि महायस! पुणोवि नियदंसणं देसु ॥ २४९॥ पुत्त ! तव पेमपरवसमणेहि न कयावि अविणओवि कओ । भणियममणोरमं ते ता कत्तो इय विरत्तो सि ॥ २५०॥ अमओवमेहिं वयणेहिं सवणजुयलं सुहावसु पुणोवि । किमकुसलसंकिराई तमुवेक्खसि अम्ह हिययाई ॥ २५१॥ नियवंसनीरहिससिं गुणरयण * निहिं हरंतएण तुमं । विहिणा निहिमादंसिय नयणुप्पाडो को अम्ह ॥ २५२॥ भुवणोदयगिरिसिहरारूढेणचुच्चयं पव
नेण । सूरेण तए रहिया अम्ह दिसो तिमिरभरियव ॥ २५३ ॥ विभवस्स सुहस्स तहा जसस्स तं अम्ह केवलो हेऊ ।
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॥४०६॥

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