Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

View full book text
Previous | Next

Page 939
________________ जगतोऽप्यद्भुतमिदम् ॥ २॥" इय थुणिऊणुवयिट्ठो नियठाणे पत्थुया य धम्मकहा । पीऊसजलहरासारमहरवाणीए जयगमणा ॥१६॥ जीवा कसायइंदियविगारवसगा विसोवमं कम्मं । वंधति भूरिभवभमणकारणं वहविहवियप्पं ॥१६॥ एगिदियाइम तओ जाईमु अणेगहा भमेऊण । कहकहवि कोवि कइयावि जइ परं लहइ मणुयत्तं ॥ १६२॥ लद्धेवि तम्मि निम्मलकुललाभो दुल्लहो जओ जीवा । सारयससंककरपसरगोरजसभाइणो होति ॥ १६३ ॥ तम्मिवि लद्धे रूवाहाइयाण गुणकारणाण भावाण । दुलहो समागमो भद्द! भवजणजणियतोसाण ॥ १६४ ॥ तत्थवि अरि अन्नोवि वहसुओ साह । कहवि य जइ पाविज्जइ पनवओ सुद्धधम्मस्स ॥ १६५॥ पत्तेवि तम्मि सद्धा नो परिसुद्धापियत्तए तत्तो। ता मवगुणुवलंभे जुत्तो धम्मुज्जमो काउं ॥ १६६ ॥ इहरा कप्पदुमसंगमंपि जह कोवि निष्फलं नेइ ।। लिप्यायत्तणपत्थणाए तह भोगसुहलुद्धो ॥ १६७ ॥ एसो जणो सुहाणेक्ककारणं लछमेयगुणनिवहं । मूलाओ निष्फ लत नेइ दुरप्पा तहाहि इह ॥ १६८ ॥ कत्थइ पुरे किलेगो आसी कुलपुत्तओ सभावेण । निद्धणचंगो निष्फलवावारो मगलकालंपि ॥ १६९ ॥ एत्तोच्चिय सकारं सिरम्मि कइयावि अलभमाणो सो। जाओ लेक्खालक्खेहि तह य जयासहम्सेहिं ।। १७० ॥ परिसजमाणमत्ययदेसो पीडं परं परिवहतो । निबिन्नो इच्छंतो मरणंपि रइं अलभमाणो ॥ १७१॥ दमंतरमरणाओ पायं णासं उवेइ दालिदं । इय चिंतंतो भुक्खाइ सो किलंतो परिभमंतो ॥ १७२ ॥ पत्तो तत्थ पएसे जत्थेगो कणपाययो अस्थि । नियकुसुममोरभुग्गारलुद्धफुलंधयसणाहो ॥ १७३ ॥ गयणयलविसप्पिरडालजालसालंतसतापपरिणामो । धयछत्तचिंधमालाकयजणलोयणमणाणंदो ॥१७४॥ संपाडियपणइजणभत्थणसमणंतरभुयपयत्थो । SOSYSGRESSOUS DISCOGS

Loading...

Page Navigation
1 ... 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008