Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala

View full book text
Previous | Next

Page 941
________________ पत्तो वम्महरण्णो निवासनयरं स तारुण्णं ॥ १९९ ॥ सा पुण उम्मायंती वेयढे उत्तराए सेढीए । मणिकुंडलम्मि णयरे पत्ता जोवणमुम्माहकारणं तरुमणिवणो राइणो धूया ॥ १९२ ॥ मणिमालियाए भज्जाए चंदकंताभिहाणिया जाया | गालीयाणं ॥ १९३ ॥ सो तेण सचरिएणं सरयससिनिम्मलेण लोगम्मि । जाओ सलाहठाणं खयराणं भूचराणं च ॥१९४॥ तीए न कत्थवि नरे मणोहरम्मिवि निभालिए रागो । जं णो जायइ, जणगाण तो मणो आउलीभूयं ॥ १९५ ॥ जं जोबजयंतीओ णारीओ भन्नुणा परिग्गहिया । सुहगत्तं जंति जणे न अन्नहा ता कहं कज्जं ॥ १९६ ॥ एवं ताई चिंता उराई निति जाव ता कत्तो । निसुओ लोयमुहाओ जसवाओ देवसेणस्स ॥ १९७ ॥ तस्सवणाणंतरमेव तीए पुबिल्लभवसि - वसा । खीरजलहिष चंदोदयम्मि रागो समुग्घडिओ ॥ १९८ ॥ तयणंतरमेव निए देहेवि न संठिई कुणइ किंचि । उम्मुक्रफुल्लचंदणपमुहुत्तमवत्थुपरिभोगा ॥ १९९ ॥ परिसुन्नमणा आसामुहाई सयलाई सा निहालेंती । जरविरहियाविन कुण रई मया अन्नपाणम्मि ॥ २०० ॥ हिममलियनलिणदेहाए तीए वच्छत्थलम्मि तक्खणओ । णयणंव सोसमितं कहे | अंतोगयं तावं ॥ २०१ ॥ कमलासंकाए मुहम्मि तीए भसलावली निवयमाणा । वारिज्जइ विरहहुयासधूमसरिसेहिं ससि| एहिं ॥ २०२ ॥ मम विवसिरी मुसिया मुहेण एयाए इय विहियरोसो । अमयकरोवि ससहरो संजाओ तीए विसकिरणो ॥ २०३ ॥ परितावोवसमकए सज्जिज्जइ पलवेहिं जा सेज्जा । सावि हु दवग्गिजालावलिध देहं दहइ तीसे ॥ २०४ ॥ नाओ य कहवि विज्जाहराण लोगेण तीए अणुरागो। ते खिंसिउमाढत्ता असमाणवरब्भुवगमाओ ॥ २०५ ॥ जहा । कत्थेसा तियसवह सोहग्गोमाणणे पवीणतणू । णिप्पडिमगुणा वहुमाणभायणं खेयरजणस्स ॥ २०६ ॥ कत्थ पुण देवसेणो माणु

Loading...

Page Navigation
1 ... 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008