Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
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मसुयमाइति ॥ १७६॥ लिक्खाओ पत्तो तरुणो सनुयलिओ
श्रीउपदे
शपदे ॥४०४
STORISTOSSA
नाणाकुसुमंसुयमाइएहिं कयपीढसकारो ॥ १७५॥ निसुयमणेण जणाओ जह एसो कप्पपायवो कुणइ । सम्मं सेविजंतो विषयामणिच्छियं इच्छियं झत्ति ॥ १७६ ॥ तो चिंति पयत्तो जूयाओ ताव थूलभावाओ। हत्थग्गसंगहगयाओ मत्थयाओ भ्यासे शुसुहेणेव ॥१७७॥ वीणिज्जति इमाओ लिक्खाओ पुण कहिंचि नो जेण । ता एयासिं जूयाभावं मग्गामि कप्पतरु।१७८॥ कोदाहर| तत्तो गओ णईए हाओ पुप्फाणमंजलिं भरि । पत्तो तरुणो तस्संतियम्मि तोसं परिवहंतो ॥ १७९ ॥ काउं पयक्खि-8 णम्णाइगमवणीतलमिलियमत्थओ णमिउं । भालयलनिहियकरकमलजुयलिओ विन्नवेइ जहा ॥ १८० ॥ तं भयवं! कप्पतरू जहत्थनामा अहं तु दुक्खत्तो । ता तह कुणसु पसायं एयाओ जह सिरे लिक्खा ॥ १८१॥ जूयाभावेणं परिणमंति उज्झेमि जं सुहेणाहं । तक्खणमेव जहिच्छियभागी सो दुग्गओ जाओ॥१८२॥ जह सो रजाइफले लद्धे कप्पडुमम्मि गयबुद्धी । जाओ दुहिच्चिय इमो तह धम्मपरंमुहो लोगो ॥ १८३ ॥ इय सवणहयमायण्णिऊण वयणं जिणेण 'पण्णत्तं । तक्खणमेव विरत्तो ललियंगो भवनिवासाओ॥ १८४ ॥ पुत्तं ठवित्तु रज्जे महाविभूईए तस्समीवम्मि । उम्मायंतीसहिओ संजमगिरिसिहरमारूढो ॥ १८५॥ काऊण दुक्करतवं पजंताराहणाविहाणेण । ईसाणदेवलोए तियसत्तं दोवि पत्ताई ॥ १८६ ॥ जाया उदारभोगा चिरकालं तत्थ अह चवित्ताण । धायईसंडे पुषविदेहे रयणावइपुरीए ॥१८७ ॥ सिरिरयणणाहणरवइदेिवी)कमलावईसणामाए । ससिपाणसुमिणसंसूइओ इमो गभभावेण ॥ १८८ ॥ उववण्णो पुण्णनिहाणमणह मह मासनवगपजते । संजाओ तणओ लोयलोयणकमलायरदिणिदो ॥ १८९ ॥ पिउणो य तम्मि काले सबच्चिय देवसेन्नसारिच्छा । सेणा आसि कयं तो णाम से देवसेणोत्ति ॥१९०॥ अहिगयकलाकलावो वरपुरफलिहोवमाणबाहु जुओ।
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