Book Title: Updeshpad Mahagranth Part 01
Author(s): Pratapvijay
Publisher: Muktikamal Jain Mohan Mala
View full book text
________________
मजलहिबुद्धस्स जा दिणा जंति । ता अन्नदिणे पडिहारसूइओ एइ वणवालो ॥ १३१॥ भालयलनिहियकरकमलसंपुडोडा पणमिकण भूनाहं । विण्णवइ देव जं अज तुम्ह तयणम्मि उजाणे ॥ १३२ ॥ नामेण य अत्येण य मणोरमे गंधलुद्धभिमरम्मि। वहलदलभारसाले तमालमालाखलियतावे॥१३३ ॥ सिरिहरनामा तित्थाहिनायगो जह सिरीए कुलभवणं । हामंपत्तो मयलमुरासुरिदवंदिजमाणकमो॥ १३४ ॥ वयणे जस्स विसुद्धादरिसयले इव गुणा य दवा य। पडिविवियव
दीमति जमगसमग वुहुजणाण ॥ १३५ ॥ जस्संगसंगयावि हु गुणा समग्गे जयम्मि वियरंति । हुंतावि अणंता तह लहंति गणणं गुणिजणेमु ॥ १३६ ॥ जस्स पयपंसुपरिफंसणेण भूसियसिरोरुहा संता । सुरअसुरनरा न कुणंति वासचुन्नेसुर अहिलासं ॥ १३७ ॥ तह तत्थ वणे जा कावि देवसोहा समागए तम्मि । जाया तन्नो वोत्तुं सत्तो हं कयपयत्तोवि॥१३८॥ तहवि तुममेगचित्तो आयन्नसु नाह! किंपि जंपेमि । जं तग्गुणतरलमणो मोणं काउं न तीरेमि ॥ १३९ ॥ अप्पत्तेवि यमंते तस्साइसरहिं विम्हियमणव । रोमंचे चूयतरू अंकुरमिसेण मुंचंति ॥ १४०॥ तस्साणुसंगगुणउच सोगतरुणोवलखपममेण । नो सोढं फुलंतेण ताडणं तरुणिचरणस्स ॥१४१॥ वउलावि कयाणवयगहणत्थ तयं निभालिउं जाया। जं वहुमइरागंडूमपाणमणवेक्सि फुल्ला ।। १४२ ॥ तं देव! भूमितिलयं पेच्छिय तिलओवि विहसिओ सहसा। कस्स व न ममाणगुणे दिटे संजायए हरिसो? ॥ १४३ ॥ जह सोहंति पलासा सवत्तो किंसुएहिं तम्मि वणे । तह जंबूतरुणोवि हु। तरुणेहिं न किं सुएहिं पहू? ॥ १४४ ॥ जहसदं विहगरवेहिं देव! देवीए काणणसिरीए। दंतावलिब रेहइ कुंदतरूणसु-6 कलमाला ।। १४५ ॥ तह तस्स भयाओ पलायमाणवम्महमहल्लमिल्लस्स । वाणावलिब रेहइ करगलिया तत्थ वाणोली

Page Navigation
1 ... 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008