Book Title: Tran Prachin Gujarati Krutio
Author(s): Sharlotte Crouse, Subhadraevi
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 38
________________ ५ खंभा ति क्षुद्रखंडणी, अनाड नाड दंडणो । अराति जाति थंभणो, सो पासि पूजि थं भणो ॥ २१ ॥ कंसारि भी डिभंजनो, के सरियो मनरंजनो । दारिद्र मुद्र मंजनो, अजाहरू अंगंजनो ॥२२॥ जो देखी दुख धुजीउ, सु महर पास पूजिउ । घूघे सोजें अखंड, सो पास नव्व खंड उ ||२३|| भोइ दुख मोडणी, सो वेलु पास लोडणो । संसार भार छोडणो, कुकर्म जाल फोडणो ॥ २४ ॥ दक्षण देश दक्षणो, जो दुष्ट कुष्ट धक्षणो । सो अन्तरीक्ष रक्षणो, सेवंति सो विचक्षणो ||२५|| जो भोगरा पुरंदरो, विघन्न शत्र संहरो । कला रहु कलाधरो, अमी झरू अमीझरो ॥ २६॥ नमसि नव् पल्ल वो, सो पास शत्र - शल्लवो । भीमंजनो भटेवओ, श्री पर्व्व तो सुसेवउ ||२७|| खातु सुखंति पूरणो, दादो दारिद्र चूरणो । नमो आनन्द पुरणो, जो कीय लोक जुरणो ॥ २८ ॥ श्री पासजी पंचासरो, नारिंग रंग दे पुरो । वाड चु व्याधिवारणो को कु सुकाज कारणो ॥ २९॥ " चारूप चित्ति आवीउ, धृत कल्लोल भावीउ । जीरा उल वधावीउ, कडी चु देखी फावीउ ॥ ३० ॥ गुडी चु राय गाइईं, वरकाण राण ध्याइहूं । गारल्लीउ आराहीई, वांछित अर्थ पाईई ॥ ३१॥ भाभो भलेस भेटीउ, कुकर्म मर्म खेटीउ । जिणंद बंद साम लो, वछोडि चेत आमलो ॥ ३२ ॥ बीबी पुरे चिंतामणी भाव भेठतां हणी । सो विजय आदिम पुरे चिंतामणि शकंद रे ||३३||

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