Book Title: Tran Prachin Gujarati Krutio
Author(s): Sharlotte Crouse, Subhadraevi
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 41
________________ पूर्वछायो । संखे स र पुर पास जी प्रगटीउ परम दयाल । सेवक ने संपतिकरण, भव भावठ हर काल ।।१२।। काल अनादि अनंत तु रह्यो सदा शिव वासी ! रूप, न रेष, न राय रज, अकल एक अविनासी ।।५३।। रूपक त्रिभंगी छंद ।। (पनमं दह रहणं अट्टहरहणं पुणवसु रहणं रस रहणं मिथ्यादि॥) अविनाशं ईशं जय जगदीश परब्रह्मेशं परमेशं असुरी-असुरेशं सुरेश्वरेशं नारीनरेशं नागेशं । मुनि-मुगति जगीशं जपइ जिनेशं लहे लील अविचल वासं सं खेस र पास पूरे आसं लील विलासं गुण वासं ।।५४।। तु विष्णु महेशं ब्रह्मगणेशं शक्ति सुरेशं सिद्धेशं भूतेशं भेशं हृषीकेशं सर्वज्ञेशं बुद्धश । योगी भोगीशं खुदा खगेशं षट्दर्शन मागे ग्रासं संखे स र पासं ० नही हास लासं खासं सासं नासं त्रास विषयासं गंगा गुण रासं रंभा भासं गावे जासं उल्हासं । मरकत मणि वासं तनु आभासं न य सुंदर तेहनो हूं दास संखे सर पास ० ॥५६॥ जस पुण्य न पापं आपो आपं विरह विलाप नहीं शापं जस सीत न तापं वन करी चापं नही आलापं संलापं । योगीसर जापं यशो दुरापं विश्वव्यापं गतमापं बालक जिम बापं निसुणी ढापं कलाकलापं कर थापं ।।५७।। संखे सर पासं० पूर्वछायो । थाप करूं चिहु दिसी सुयश महिम महोदय वास । रसना एके अपढ नर किम कहें तुह गुण-रास ॥५८॥

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