Book Title: Tran Prachin Gujarati Krutio
Author(s): Sharlotte Crouse, Subhadraevi
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 47
________________ १४ कि तूं पान पीयूष पीतां न द्रायो कि तूं कोटि रवि अधिक प्रकाश पायो । कि तूं परमहंसो जप्यो "हंस सोहं" कि तें भाव रिपु धूजवीयो मोह जोहं ॥ ९३ ॥ कि तूं इडा वर पिंगला सुषुम्ना स्युं कि तूं त्रिवेणी संगमें आय वास्युं । कि तु हंस ने भ्रमर एकत्र आणी कि तूं झीलीउ सुषुम्ना सबल पाणी ॥ ९४ ॥ कि तूं हंस मधुकर दोउ विमल कीधा कि तें पंक ने पास जावा न दीधा । कि तें राय विवेक ने मान दीधुं की तुं तास उपकंठ बहू कटक कीधुं || ९५|| कि तुं पुत्र निवृत्तिनो अतिसुहा वीउ कि तें आपणी पुत्रीका कर ग्रहावी कि तुं पुण्य रंग पाटण राज्य थाप्यो कि तें मोह-दल भंजीवा दूउ आयो ॥९६॥ - की तूं सत्य सीहासणे इसो बेसाय कि तुं आण - अरहंत सिरि छत्र धार्यो || कि तं शौच संयम दीय चमर बेहु कि तें पटगज तत्त्व चिंतन तेहुं ॥९७॥ कि तूं पुत्र विवेक ना गुहुर कीधां कि तें मोह - सुत साथि विलगाडि दीघां । कि तूं काम वैराग्य हाथ हणाव्यो कि तूं संवरे राग हेला जिणाव्यो || ९८ || कि तू समरसें द्वेष निःशेष वार्यो कि तें सम कि तें मूल मिध्यात्व मार्यो । कि तूं आलसो अलग किय रुष का रे G कि तें हन्यु प्रमाद ज्ञान - तलारे ॥९९॥

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