Book Title: Tran Prachin Gujarati Krutio
Author(s): Sharlotte Crouse, Subhadraevi
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 58
________________ ३. श्रीवृद्धचैत्यवंदन श्री-खेमा-कृत पहला प्रणमुं प्रथम नाथ । श्री आदि जिनेसर । बीजा अजि इ जिणंद देव । वंदु परमेसर । ए श्री संभ व भवसमुद्र । तिहुअणनउ तारण । श्री अभिनंद न, सुमति नाथ । दोए दुरगति निवारण । पद्मप्रभ, श्री सुपास जिण। श्री चंद-प्रभ स्वामि । प्रहि ऊठीनइ प्रणमसिउं । नवनिध हुईं जस नामि ॥१॥ . विधिसिउ वंदउ सु विधि नाथ । शी त ल सुखदायक। श्रेयांस नइं श्री वासुपूज्य । जीवन जग नायक । वंदक विमल, अनंत, धर्म । ए अचिंत चिंतामणि । शांतिकरण श्री शांति, कुंथु । अर, मल्लि मुकुटामणि। श्री मुनिसुव्रत वंदसिउं ए। श्री न मि, ने मि कुमार । पास, वीर जिन प्रणमसिउं। जिम हुइ हर्ष अपार ॥२॥ त्रिभुवन माहे जे छइ जिन । प्रासाद शाश्वता अशाश्वता । ते सवि वंदउं वरतमान। अतीत अनागता। श्री सीमंधर विहरमान छइ । वीस तीर्थंकर । अडढीआं दीपां माहि । साधु जे महा मुनीसर । ते सवि वंदउं भगति भरे । श्री जिन सासन सार । जे अहनिसि आराहसि । ते तरसिई संसार ॥३॥ हिव श्री सेत्तु जइं सिर स्वामि, वंदउ ऊ जयंत गिरि। अष्टा पद नई स मे त सि हर। जिनवर नं दि स रि। घोघे नवषंड, कुल्पाक पास । जिन जे जग तारिं। जीवित स्वामि जुगादिदेव । वंदो सउंपारई। भरु अछि वंदउ मुणिसुवए । थंभण पुरि श्री पास । पाटि णि श्री पंचास रो । जे प्रभु पुरइ आस ॥४॥ दही उ द रि श्री शांतिनाथ । दुह दुरिअ विहंडण ! पल्ल विहार जुहारि वीर । सा चोर इ मंडण ।

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